हालाँकि दिल्ली में सरना धर्म कोड के लिए जन्तर मन्तर पर एक दिवसीय धरना एवं हो भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल कराने के लिए हो समाज के २०-२२ सदस्य दिल्ली आ रहे हैं, इसकी सूचना मैंने १५ -२० दिन पहले ही दिशुम संस्था के अध्यक्ष जामुदा जी को दे दी थी। जब हम लोग १९ अगस्त २०१३ को दिल्ली के मधु कोड़ा आवास पहुंचे तो वे भी वहाँ आ गए थे। स्टेशन से मधु कोड़ा के यहाँ रहने वाले सहयोगी ललित हमलोगों को recieve कर मधु कोड़ा के आवास तक ले आए। दिशुम संस्था से हो समाज के लिए क्या क्या कर रहे हैं, दिशुम संस्था वालों ने उसका पूरा व्योरा दिया, साथ ही आरसी पत्रिका भी मुफ्त में बांटा। चूँकि मधु कोड़ा के आवास में इतने दिनों से कोई नहीं रह रहा था, इसीलिए वहां खाने पीने की समुचित व्यवस्था का आभाव था। अन्दर ही अन्दर हमलोग सोच रहे थे कि एक गैस सिलेंडर और खाना बनाने का बर्तन आदि मिले तो हमलोग अपना खाना खुद ही बना लेंगे। दिशुम संस्था के लोग २ -३ घंटे हमारे बीच रहे, अपना गुणगान करते रहे, लेकिन आशा के विपरीत न तो गैस उपलब्ध कराने पर उन्होंने कोई बात की और न ही ये पूछा की आपलोग कैसे खाएंगे पिएंगे। जबकि उनके पास सुनने में आया की बड़े बर्तन भी थे, जो वे खुद कह रहे थे। लेकिन हमलोगों के लिए उपलब्ध कराने सम्बन्धी उन्होंने कोई प्रस्ताव भी नहीं दिया। मन मसोस कर हमलोगों ने मधु कोड़ा के घर में रहने वाले ललित के साथ रात में ही आनन फानन में गैस सिलिंडर ले आए, राशन भी ले आए। ललित के पास छोटे छोटे बर्तन थे, जिसपर हमलोगों ने २ या ३ बार खाना चढ़ा कर खाना खाया। फिर भी जुझारू और जुनूनी लोगों ने सरना धर्म कोड एवं हो भाषा को आठवीं अनुसूची में डालने के प्रयास में कोई कमी नहीं होने दी। २० अगस्त २०१३ के धरना प्रदर्शन में देश भर के १०००-८०० लोग जो हो, मुन्डा, संथाल, उरांव जनजाति के थे ने बढ़ चढ़ कर भाग लिया, लेकिन दिशुम संस्था का कोई भी प्रतिनिधि झाँकने तक नहीं आया। बातचीत में भी उनलोगों की ओर से कई आपति जनक comment आए, जिसे blog में लिखना सही नहीं है। २३ अगस्त को मैं वापस आ रहा था तो वहां किसी को छोड़ने दिशुम संस्था के लोग भी station आए थे। जब मैंने उन्हें विभिन्न जगहों पर हो समाज के लोगों द्वारा किए प्रयासों का उल्लेख किया तो वे हौसला अफजाई करने के बजाय ये साबित करते नजर आए कि ये सब तो कुछ भी नहीं है। सांसद धर्मेन्द्र प्रधान गैर आदिवासी है, जयराम रमेश गैर आदिवासी हैं, डॉ अजय कुमार गैर आदिवासी हैं, उन्होंने हो भाषा को आठवीं अनुसूची में डालने के लिए हो लोगों को सहयोग किए,उन्हें कोटि कोटि धन्यबाद ! पर दिशुम संस्था के लिए क्या कहूँ???
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