दिल्ली में प्रयासों का आकलन

हो भाषा को आठवीं अनुसूची में डालने के लिए आदिवासी हो समाज महासभा का एक प्रतिमंडल जय राम रमेश के चाईबासा आगमन पर मिला था। जिसमें दो demand रखे गए थे, पहला कि हो भाषा को संविधान के आठवीं अनुसूची में शामिल किया जाए और हो भाषा एवं शिक्षण संस्थान के लिए भवन का निर्माण किया जाए। दोनों विषयों पर जयराम रमेश ने सहमति दे दी थी और इस सम्बन्ध में दिल्ली आने का न्योता भी दिया। उसके पूर्व बादाम पहाड़ (ओड़िशा) में आदिवासी हो समाज महासभा, ho writers association, एवं ho student union, bhubaneswar, ने सभा के उपरान्त संयुक्त रूप से मानसून सत्र के दौरान दिल्ली में camp कर सरकार पर दबाव बनाने का निर्णय लिया गया था। प्रतिनिधिमंडल कांग्रेस नेतृत्व से मिलने के लिए चाईबासा से सुशीला पुरती, सदस्य, All India Congress committee को साथ लेकर गई। ओड़िशा से मनोरंजन तिरिया धर्मेन्द्र प्रधान, राज्यसभा सांसद सह राष्ट्रिय सचिव भाजपा के संपर्क में थे। जमशेदपुर से आदिवासी हो समाज युवा महासभा के सदस्य डॉ अजय कुमार (सांसद) को विश्वास में लेकर आगे बढ़े। प्रतिनिधिमंडल दिल्ली पहुंची और पहला दिन यानि १९ अगस्त २०१३ शाम ६ बजे जयराम रमेश से मिलने के लिए कृषि भवन दिल्ली पहुंचे, लेकिन पास बनाने वाला counter बंद रहने के कारण हमलोग जयराम रमेश के आवास पहुंचे। पता चला वे आवास पर किसी से नहीं मिलते हैं, जब भी मिलते हैं तो कार्यालय में ही मिलते हैं। पुन: कार्यालय पहुंचे ७ बज चुके थे। बताया गया कि पार्टी के मीटिंग के लिए निकल गए। इसी दिन हमलोग दिल्ली पहुंचे थे, दिन असफल रहा, बाकि बचा कूचा थकान दिशुम संस्था वालों ने और भारी कर दिया। २० अगस्त जन्तर मन्तर पर सरना धर्म कोड के लिए एक दिवसीय राष्ट्रिय धरना में सभी उपस्थित हुए। २१ अगस्त को ३ बजे जयराम रमेश से मुलाकात का समय मिला। लेकिन इसी बीच मनोरंजन तिरिया के प्रयासों से धर्मेन्द्र प्रधान ने गृह राज्यमंत्री R P N Singh से मुलाकात का पास आदि ८ लोगों का बनवा दिया, समय दिया गया १ बजे दिन का।
         गृह राज्यमंत्री R P N Singh के कार्यालय में धर्मेन्द्र प्रधान से साथ प्रतिनिधिमंडल पहुंचा। मधुसुदन मारला, केन्द्रीय अध्यक्ष आदिवासी हो समाज महासभा ने विस्तार से हमारी मागों को रखा। बात सुनने के बाद R P N Singh ने कहा कि महापात्रा committee के रिपोर्ट के अनुसार तो अगले १०० सालों तक किसी भी भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल नहीं किया जा सकता है। चूँकि आपलोग धर्मेन्द्र प्रधान (भाजपा) के साथ मिलने आए हैं इसीलिए स्पष्ट कर दे रहा हूँ, की मौजूदा हालात में संभव नहीं है, लेकिन कैबिनेट नोट हमने लिख दिया है कि इसमें कुछ रियायत दी जाए। वे बार बार यह जता रहे थे की चूँकि आपलोग धर्मेन्द्र प्रधान के साथ आए हैं, इसीलिए स्पष्ट कर दे रहा हूँ की हो भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल अभी नहीं किया जा सकता है। नोट : शायद कांग्रेस वालों के साथ जाते तो उनका जवाब कुछ और होता। वहां से जैसे ही निकले धर्मेन्द्र प्रधान जी की टीम  ने मिडिया वालों को भी बुला रखा था। मिडिया में धर्मेंद्रजी का बयान गया, साथ ही मधुसुदन जी का भी। यूँ कहें मिला कुछ नहीं पर credit जरूर गया भाजपा को।
            वहां से निकल कर सीधे हमलोग कृषि भवन जयराम रमेश(मंत्री, ग्रामीण विकास विभाग, भारत सरकार) के यहाँ गए। सभी को अन्दर जाने का मौका मिला। हमलोगों को देखते ही जयराम रमेश ने याद करके कहा कि आपकी दो मांगें हैं १ . हो भाषा को आठवीं अनुसूची में डालना है और हो भाषा शिक्षण संस्थान के लिए भवन बनाना है। हो भाषा के लिए तुरंत letter draft करवाया और गृह मंत्री भारत सरकार को व्यक्तिगत रूचि का हवाला देते हुए प्राथमिकता के आधार पर आठवीं अनुसूची में डालने के लिए अग्रेतर करवाई हेतु गति प्रदान करने की बात लिखी गई। और भवन के लिए west singhbhum के उपायुक्त को फोन तुरंत लगाया गया। और बस्तुस्थिति की जानकारी ली। उपायुक्त ने जवाब दिया कि हो महासभा का प्रतिनिधिमंडल चाईबासा आने पर  उनसे मिले, प्रोजेक्ट मिलकर बनायेंगे और यथाशीघ्र हम केंद्र को report भेजेंगे। काम देखकर हमलोगों को सुकून का एहसास हुआ।
              जमशेदपुर के सांसद डॉ अजय कुमार ने गृह सचिव भारत सरकार श्री अनिल गोस्वामी से मुलाकात का समय लिया और प्रतिनिधिमंडल उनसे मिला और अपनी बातें रखी। साथ ही १०० सांसदों से हस्ताक्षर करवाने की बात भी उन्होंने करी। आदिवासी हो समाज युवा महासभा जमशेदपुर एवं आदिवासी हो समाज महासभा, केन्द्रीय समिति को दो-दो कंप्यूटर भी उन्होंने देने का आश्वासन दिया।
            धर्मेन्द्र प्रधान के बयान के मिडिया में आने के बाद कांग्रेस वेट एन्ड वाच में लग गई और इस बीच सोनिया गाँधी आदि से मिलने के प्रयासों को धक्का लगा। मैं और भूषण पाट पिंगुवा इस मत में थे कि ओड़िशा के प्रतिनिधि भाजपा line में बात रखें और झारखण्ड वाले कांग्रेस line में। पर ऐसा नहीं हो पाया। चूँकि planning एवं execution के लिए हम ही लोग थे इसीलिए गलती की भी गुञ्जाइस थी पर यह सोचकर हम काम करते गए कि बात तो पहुंचा दी जाए फिर जो होगा उस पर सोचेंगे।
           यहाँ दो बातें मैं उजागर करना चाहता हूँ की सरकार पर दबाव बनाने की रणनीति हमें बैठकर तय करनी चाहिए और कहाँ पर किसके lobbing से ज्यादा से ज्यादा फायदा होगा आदि पर पहले से रणनीति तय रहनी चाहिए। दूसरी बात यह है की समाज के लिए इस तरह के प्रयासों को समाज की ओर से धन उपलब्ध कराया जाए। समाज सबके प्रयास से आगे बढ़े तो बात ही कुछ और होगी।

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