बलभद्र बिरुवा, (पीएचडी
स्कॉलर)
Assistant Professor (Economics)
University of Delhi
bbirua@gmail.com
धर्म विभिन्न तत्वो का सम्मलित रूप है । इनमे भक्ति,
विश्वास, संस्कृति संरचना इत्यादि शामिल है, साथ ही साथ यह दुनिया को देखने का एक नजरिया
भी है, जिससे मानव का अस्तित्व जुड़ा हुआ है ।
भारतीय समाज में (गैर आदिवासी एवं आदिवासी) धर्म रची
बसी हैं, अत: भारत में धर्म की अनदेखा नहीं की जा सकती । ग्रामीण परिवेश में भी धार्मिक
क्रियाकलापों का अपना अलग महत्व है । देश में होने वाले जनगणना एवं सरकारी दस्तावेजों
में भी धर्म उल्लेखित हैं । भारत में धर्म की सांख्यिकीय जानकारी सेन्सस ऑफिस के द्वारा
कराये जाने वाले जनगणना से होती है, जो दस वर्ष में एक बार होती है । सेन्सस प्रश्नावली
में निम्न धर्मो को मान्यता प्राफ्त है - हिन्दू (1), मुस्लिम (2), इसाई (3), सिख
(4), बौद्ध (5), जैन (6), अन्य धर्म एवं विश्वास (Other Religions and
Persuasions-7) और धर्म यक्त नहीं किया
(Religion not stated – 8) ।
भारत में धार्मिक स्वंत्रता
का अधिकार हर यक्ति को प्राफ्त है । सेन्सस के आकड़े दर्शाते हैं की भारत के आदिवासीयों
के हिन्दू, मुस्लिम, इसाई, सिख, बौद्ध, जैन इत्यादि सहित बिभिन्न नामों से अनेक
धर्मे हैं । एवं इन धर्मो की सख्या सौ से भी अधिक है ।
दुरस्थ, अनपढ़, गरीब आदिवासियो
को, जिन्हें शायद सेन्सस क्या होता है, मालूम भी नहीं है, उपरोक्त धार्मिक खंडो में
से कोई एक उत्तर देने को कहा गया । अगर किसी ने कोई अन्य धर्म का नाम कहा है, तो उस
धर्म का नाम लिख कर उसे अन्य धर्म एवं विश्वास (Other
Religions and Persuasions) के अन्तर्गत रखा गया ।
झारखण्ड में आदिवासियो के 47 धर्मे हैं । इसी तरह
बंगाल में 33, बिहार में 22, उड़ीसा में 21, छतिसगड़ में 19, और मध्य प्रदेश में आदिवासियों
के 8 धर्मे हैं. 'संथाल', 'मुण्डा', 'उराव', 'हो', 'खड़िया', 'आदिवासी', 'मानवता' भी
झारखण्ड के आदिवासियो के धर्मो के नाम हैं । आदिवासी देवी -देवता, पूज्य स्थल जैसे ‘बुरु बोंगा’ ‘मरंग बुरु’, ‘आदमी’ ‘मानवता’,
‘ST’ को भी सेन्सस ऑफिस आदिवासियों के धर्मे मानती है, बाकयदा इन धर्मो को धार्मिक
कोड भी दिया गया है ।
एक विचारधारा आदिवासियो
सन्दर्भ यह है की, आदिवासियो को अलग धर्म कोड देना, उनके बीच एकता तोड़ेगी । अत: इन्हें
आर्थिक शोषण के खिलाफ, आदिवासियत के नाम पर ही एक होना चाहिये । एवं इन्हे जनजातीय
भाषा, शिक्षा, सांस्कृतिक विकास पर ही ध्यान दिया जाना चाहिए । लेकिन अगर वर्तमान में
देखा जाये तो धार्मिक शुन्यता ही, आदिवासियों को विखाडित किये हुए हैं । अत: एक वैसे
धार्मिक पहचान की मांग स्वभाविक हैं, जिनके नीचे सारे आदिवासी समुदाय आ सके । साथ ही
साथ, धार्मिक स्वतंत्रता, सहिषुणता भी कायम रहे !
कई बार यह तर्क दी जाती
है की, अगर आदिवासी हिन्दू हैं तो वे इसके कौन से वर्ण में आयेगे - ब्राहमण, छत्रिय, बैश्य या फिर शुद्र ? पूर्वोतर भारत के ट्राइब्स के बीच में
इसाई धर्म प्रचलित है, वही भारत के अन्य भागों में आदिवासी, मूलतया हिन्दू
धर्म की ओर आकर्षित हुए हैं,
Census, 2001 के अनुसार मध्य प्रदेश की 96%, छतिशगड़ की 93%, बिहार की 89%, बंगाल की
74%, और झारखण्ड की 40% आदिवासी हिन्दू धर्म के रूप में दर्ज हैं. अत: नये आदिवासी धर्म कोड की जरुरत नहीं है ।
आदिवासी मुख्यता प्रकृति पूजक हैं । वे
जंगल, पहाड़, पेड़, पौधे, एवं अपने पूवर्जो की पूजा करते हैं । इनलोगों के पर्व - त्यौहार
भी प्रकृतिक से सबंधित हैं । इन पर कई पुस्तके एवं लेख उपलब्ध हैं
। आदिवासियो के लिए अलग धर्म
कोड की मांग हमेशा उठती रही है । कई बुद्धिजीवी, नेता-मुख्यमंत्री, समाजिक कार्यकर्ता
एवं जागरूक लोगों द्वारा समय -समय पर कई नामों की सलाह दी जाती रही है ।
उदाहरणत: बिदिन धर्म, आदि धर्म, आदिवासी धर्म, गोंडी धर्म, सरना धर्म इत्यादि । लेकिन किसी खास धर्म के नाम पर सहमति
आम जनता की होनी चाहिए । ना की किसी नेता, सरकारी अधिकारी या समाज सेवक के द्वारा अपने
उच्च दिमाग का प्रयोग करते हुए, अपना नाम प्रचार करने के लिए होनी चाहिए । और ना ही आदिवासी धर्म के लिए नया
नाम इजाद करने की जरुरत है ।
आम जनता का राय सेन्सस में बखूबी दिखती है। जिन्होंने उनके लिए धर्म
का प्रश्नावाली उलेल्ख में नहीं रहने पर भी अपनी इच्छा से धर्म के लिए नाम चुना
है अत: सेन्सस से अच्छा और कोई बढ़िया पैमाना नहीं हो
सकता । हाँ, किसी भी नाम पर सहमति से पहले कुछ चीजे दिखने जरुरी है, जैसे - वह खास
नाम का धर्म सभी आदिवासी समुदाय संथाल, गोंड, उराव,
मुण्डा, हो, खड़िया ....... बिरहोर, असुर तक अपनी इच्छा से अपनाई गई हो,
ताकि उनके बीच अंतर द्वन्द की स्थिति ना आये । यह उनके बीच % या सख्या
के रूप में महत्वपूर्ण हो । गैर आदिवासी भी इसको मान रहे हैं । यह देश के काफी
बिस्तृत भाग में हो । रास्ट्रीय स्तर पर वर्तमान "Other
Religions and Persuasions" का काफी महत्वपूर्ण हिस्सा हो । क्योकि भारत
मे काफी सारे धर्म हैं, आदिवासियो के भी । सबको सेन्सस प्रश्नवाली में जगह देना संभव नहीं है और किसी को अपना धर्म
बदलने के लिए भी बोलना ठीक नहीं है । आदिवासियो के लिए धर्म के लिए इतने सारे नाम इसलिए
उठ रहे हैं क्योकि वास्तविकता लोगो को पता
नहीं है. सेन्सस ऑफिस भी आदिवासियो के धर्मो को छुपा रहा है, विस्तृत जानकारी
देना नहीं चहता. हो सकता है, ‘देश’ को खतरा हो की इससे आदिवासी एक
हो जायगे इतना ही नहीं, सेन्सस ऑफिस अन्यों से हट कर आदिवासियो को अपने
धर्म की जानकारी के लिए RTI करने की सलाह देता है, उसे डर है की इसे सावर्जनिक करने
से धार्मिक अशांति बढेगी ।
पहले
उठाये गए, आदिवासी धर्म कोड की मांग क्यों फेल हुए ?
सेन्सस
ऑफिस को जब भी कोई प्रतिवेदन/ मांग दिया जाता है, तो वह उस पर विचार करने से ज्यादा
कैसे उसे Invalid ( इन वैलेड) समझा जाये, इस
पर ज्यादा ध्यान लगता है, अस्वीकृत कैसे किया जाए इसके कारण खोजता है । कियोंकि अगर
वह मांगो को सहजता से स्वीकार करने लग जाये तो उसके पास मांगो का अम्बर लग जायगा ।
ठीक यही प्रिंसिपल किसी गैर आदिवासी / सरकार के साथ भी लागू होती है । कियोकि ये सारे
अंग अपने काम में काफी दच्छ होते हैं । सेन्सस ऑफिस, आकड़ो से खेलने में माहिर है ।
आदिवासी
धर्म कोड की मांग समय समय पर उठाई जाती है, लेकिन
उचित तर्क संगत प्रेजेंटेशन और लिखित डॉक्यूमेंट ना होने की वजह से, मांग ख़ारिज
होती रही है । उदाहरणत: डॉ राम दयाल मुंडा के नेत्रत्व में एक ज्ञापन सेन्सस ऑफिस को दिया गया
था, जिसकी खामियां निम्न लिखित हैं, जिसकी वजह से सेन्सस ऑफिस ने सरलता से आदिवासी
धर्म कोड की मांग को अस्वीकृत कर दिया
(1)
‘’ 8-9% आदिवासियों का धर्म कोड नहीं ’’ - जैसे ही यह सूचना सेन्सस ऑफिस को दी जाती
है, वह इसे ख़ारिज कर देगा, क्योकि नार्थ ईस्ट के ज्यादातर आदिवासी इसाई और मध्य भारत
के आदिवासी हिन्दू धर्म की ओर उन्मुख हुए हैं । अत: वांछित तर्के, सरना धर्म का कम्पोजीशन,
'अन्य' के मध्य कितना है ; उदाहरन्त: अन्य 66 लाख में 40 लाख सरना हैं, अन्य ; हो'
मुंडा, उराँव, धर्मे नहीं हैं । सरना मध्य भारत की सभी जनजातियो का धर्म है । शुद्ध
रूप से यह जैन के बराबर है. लगभग सभी राज्यों में सरना है। इत्यादि बाते होनी चाहिए
।
सेन्सस
2011 में मुख्य मांग थी की, आदिवासियों को अलग धर्म कोड, (7) आदिधर्म / ट्राइबल रिलिजन
............... दिया जाये, जहाँ खाली जगह ………… '' सरना'' ''गोंड'' ''सारि धर्म'' से भरना था । यह मांग बिलकुल भी
applicable नहीं थी, समस्या ज्यो का त्यों रहती, लोगों में धर्म के प्रति confusion
इसके बाद भी रहता । क्योकि कोई भी धर्म किसी खास कॉमुनिटी '' ट्राइबल / हिन्दू / मुस्लिम''
का नही होता, सविधन्त: हर एक यक्ति धर्म के मामले में स्वत्र्त है । दूसरी बात यह थी
की कितने लोग अपने धर्म के साथ ''अदि धर्म'' शब्द जोड़ना पसंद करेगे ? आम आदमी की इच्छा
सर्वोपरि होनी चाहिए, ''सरना'' शब्द आम जनता ने चुना है । वैसे आदिवासी जिन्होंने ना
तो गैर इसाई/हिन्दू/ मुस्लिम .... (मुख्य धर्मे) उनकी कुल जनसख्या का लगभग 85% जनसख्या
सरना धर्म अपनाई हुई है, अर्थात '' अन्य धर्म'' या सरना धर्म का सीधा सम्बन्ध आदिवासियो
से है।
वर्तमान स्थिति
20
अगस्त 2013 को दिल्ही के जंतर मंतर पर सरना धर्म कोड की मांग के लिए धरना प्रदर्शन
हुई थी, इसमें कई राज्यों के अनेक आदिवासी समुदाय के लोग, संगठन, नेता, बुद्धीजीवी,
जमा हुए थे । प्रदर्शन के दरमियान लोगों का प्रतिनिधि मंडल सरकारी अधिकारियो से भी
मिला, सरकार ने दो टूक जबाब दिया - '' इससे अन्य धर्म के लोग भी कोड की मांग करने लगेगे
''
सेन्सस
ऑफिस ने कहा की ''सरना को शामिल करने से लिंगायत धर्म भी अपने धर्म कोड की मांग करेगे'',
बिलकुल भी तर्क संगत नहीं है, यह मात्र टॉपिक को दुसरे दिशा की ओर मुड़ाने का प्रयास
है ।
भारत
की जनगणना में मुख्य धर्मो (हिन्दू, मुस्लिम, सिख, इसाई, जैन ...) में भी अनेक उपधर्म
हैं जैसे हिन्दू में 'वैदिक धर्म' 'आनंदमार्गी',
'राधा स्वामी', 'लिंगायत', ..........., मुस्लिम में 'सिया', 'सुन्नी', ...... इसाई
में 'रोमन', 'कैथोलिक', 'प्रोटेक्स्ट' इत्यादि । इनमे थोड़ी बहुत आपस में समानता / भिनन्ता
है। जिन्हें मुख्य धर्मो की सूचि ''Details of Sects/Beliefs/Religions clubbed
under Specific Religious Community’’ के अंतर्गत रखा गया है । ऐसे में सेन्सस ऑफिस
इन उपधर्मो का बहाना बनाकर, हमें बेवकुफ़ नहीं बना सकती । सेन्सस ऑफिस द्वारा यह मान
कर सरना कोड नही देना की, सरना कोड देने से अन्य धार्मिक समुदाय द्वारा भी लोगों धार्मिक
कोड की मांग उठने लगेगी, यह पूर्वाग्रह से ग्रसित लगता है ।
और
एक बात गौर करनी वाली है की National Statistical Survey of India (NSSO) जो सेन्सस
के समकछ कार्य करती है, 1-2 सालों के अंतराल में सैंपल के आधार पर आकड़े इकठे करती है।
इसके सैंपल आधारित आकडे भी सेन्सस के आकडों से ज्यादा अलग नहीं होते, लगभग मैच करते
हैं । NSSO के प्रश्नावली भी सेन्सस के प्रश्नावली देख कर तैयार किये जाते हैं । NSSO
Round (2004-05) में मुख्य धर्मो की सूचि में पारसी (Zoroastrian) को शामिल किया गया,
जिनकी जनसख्या रास्ट्रीय स्तर पर 2001 के अनुसार 69,601 थी, लेकिन 40 लाख सरना को नहीं
। यह पारसी भी 'अन्य' धर्मो की सूचि से लिया गया था, जिसमे सरना भी है । ना की यह मुख्य
धर्मो की उप धर्म है।
झारखण्ड में तो 5,900 बौध को कोड मिला हुआ है, लेकिन 36 लाख सरना को नहीं, यह कहाँ का न्यायोचित है ? इसलिए हमें सीधे तौर पर सेन्सस ऑफिस से मांग करना चाहिए, कियोंकि अन्य मंत्र्ल्यो से भी फ़ोन अन्तत: सेन्सस ऑफिस ही जायेगे !
राष्ट्रपति
सचिवालय में दर्ज अवेदन के अलोक में सेन्सस विभाग ने स्वीकारा है की सरना धर्म, 'अन्य
धर्मो' के माध्य काफी ऊपर है , एवं संथाल, उराँव, मुण्डा, हो' खडिया ..... भी धर्म
के रूप में दर्ज हैं, लेकिन विभाग ने अपने प्रतिउत्तर में कहा है की (1) सरना को मुख्य
धर्मों की सूचि में शामिल करने से अन्य धर्मो भी यह मांग करना शुरु कर देगे । (2) कुछ
राज्यों जैसे छतिसगड़-मध्यप्रदेश में सरना का प्रचार बहुत कम है ।
ये
दोनों ही तर्क कमजोर हैं । पहला, विभाग को
पूर्वाग्रह से ग्रसित ना होकर, कानून और समानता की स्थापना करनी चाहिए । उपधर्मो जैसे
रोमन, प्रोटेस्ट (इसाई), शिया, शुन्नी (मुस्लिम), लिंगायत (हिन्दू) के आधार पर यह तर्क
नहीं दी जा सकती की ये भी अलग धर्म कोड की मांग करने लगेगे । और यह सर्वज्ञात है की
संथाल, उराँव, मुण्डा, हो' खडिया इत्यादि जनजाति समूह हैं ना की धर्म समूह । फिर भी,
सरना को मुख्य धर्मो में शामिल करने का यह अर्थ नहीं की अन्य अल्पस्ख्यक धर्मो की समाप्ति,
अन्य धर्म ज्यो का त्यों रहेगे । वर्तमान में सरना धर्म की मांग इसलिए जायज है कियोंकि
यह मूलभूत सांख्यिकीय मानदंडो को पूरा करती है । दूसरा, विभाग यह नजर अंदाज करता है
की अन्य मुख्य धर्मो का विखराव भी कई राज्यों में सरना धर्म से भी विरल है, उदाहरणत
; मिजोरम में जैन एवं सिख की जनसख्या क्रमश: 179 एवं 326 है उसी तरह नागालैंड में जैन (2093) सिख (1152) काफी
कम सख्या में हैं । अत: महज यह कहना की सरना धर्म वाले छतिशगड़- मध्यप्रदेश में कम हैं,
न्यायोंचित नहीं है ।
अगला कदम क्या हो ?
सेन्सस, 2001 के आकड़ो को देखने से पता चलता है की भारत
में सरना नाम से एक धर्म है, जिसे सेन्सस ऑफिस ने अन्य धर्मो के भांति धार्मिक कोड
" 701146" दे रखा है । यह देश के 21 राज्यों में फैली हुई है । यह खास कर मध्य
भारत के सभी आदिवासी समुदाय : संथाल, गोंड, उराव, मुण्डा, हो, खड़िया .
........ बिरहोर, असुर के द्वारा अपनाई हुई है, वह भी अपने-अपने समुदाय के
बीच में महत्वपूर्ण सख्या या प्रतिशत के हिसाब से । हालाँकि पांच राज्यो बिहार, झारखण्ड, उड़ीसा, बंगाल, छतिशगड़ के कुछ जनजातियों ने
अपना धर्म सरना नहीं लिखा है, लेकिन इन्होने अपना धर्म “Other religion unclassified” लिखवया है, अर्थात इन्हें पता ही नहीं है, इनका धर्म क्या है
। वैसे इनकी सख्या काफी कम है । वैसे आदिवासी जिनका ना तो हिन्दू और ना
ही इसाई धर्म है, उनकी लगभग 85% जनसख्या शुद्ध रूप से अपना धर्म सरना लिखी है ।
सरना के बारे में अन्य बाते निम्नलिखित हैं
:-
(i)
सरना धर्म मानने वाले आदिवासियो की संख्या 36,17,197 है ।
(ii) सरना धर्म मानने वाले गैर आदिवासी की संख्या 4,58,049 है ।
(iii) इस तरह देश में शुद्ध रूप से सरना धर्म मानने वालो
की कुल संख्या 40,75,246 है ।
(iv) यह संख्या Other
Religions and Persuasions (66,39,626) का 61.37% है । यह Other Religions and
Persuasions में सबसे पहले स्थान पर है ।
(v) सरना को
Other Religions and Persuasions में रखे गये अन्य धर्मो से संख्या
की नजर से तुलना नहीं किया जा सकता ।
(vi) सरना धर्म देश के 21 राज्यों फैला है ।
(vii) Census, 2001 में काफी विसंगीतियाँ हैं, संथाली, उराँव, मुंडा, हो',
खड़िया ..... को भी धर्म मान लिया गया है । जबकि ये आदिवासी समुदाय हैं ।
(viii) सरना धर्म पांच राज्यों ; झारखण्ड, बिहार, उड़ीसा, छतीशगड़, बंगाल के
सभी जनजाति द्वारा अपनाई गयी है । यहाँ तक की बिरहोर-असुर
भी इसे मानते है ।
(ix) जब जैन धर्म को 42,25, 053 संख्या के साथ मुख्य धर्मों की सूचि में लाया जा सकता है तो सरना
(40,75,246) को क्यों नहीं लाया जा सकता ?
(x) धर्मो वर्ग अन्य (Other
Religions and Persuasions) में धर्मो की तदाद सैकड़ो में हैं। क्रमानुसार घटते क्रम में मुख्य
धर्मे ; Sari Dharma - 6,38,266, Gond/Gondi - 5,86,723 एवं Adivasi – 63,630 हैं । जो आदिवासियो से
सम्बंधित धर्मे है ।
सरना कोड देना सेन्सस ऑफिस का
काम है, इसकी लिए किसी लोक सभा प्रस्ताव या संविधान बदलाव की भी जरुरत नहीं है, सरल
कार्यलीय प्रवधनों द्वारा सरना कोड दिया जा सकता है, केवल इच्छा शक्ति और लोक मत की
जागरूकता की आवश्यकता है ।
अब जबकि, सेन्सस 2011 भी बिना
सरना कोड के संपन्न हो गया है, अब सरकार को चाहिए की सरना को अन्य मुख्य धर्मो के साथ
सरकारी दस्तावजों में प्रकाशित कराये, ताकि 2021 में सेन्सस प्रश्नावली में सरना धर्म
की उपस्थिति सुनिश्चित हो सके.
उपरोक्त लेख का मुख्य सार यही है, तमाम सम्भाव्य के
रहते हुए, आदिवासी धर्म की अब तक अनदेखा की गई है। आदिवासियो को अपने हाल पर छोड़
दिया गया है, या फिर उन्हें कुछ मूलभूत धर्मो में समाहित करने की कोशिस की गई है । और जहाँ
तक आदिवासी धर्म के नाम पर एक मतैक्य होने का सवाल है, यह सहमति सहमति आम जनता
(आदिवासी) की होनी चाहिए, ना की उन पर कोई नाम थोपा जाये । इसके लिए सेन्सस
के तथ्य / आकडे काफी महत्वपूर्ण हैं, जो हर एक यक्ति की धार्मिक इच्छा दिखलाते
है । साथ ही साथ आदिवासी धर्म के नाम सहमति के समय हमेशा आदिवासी एकता एवं अखडता को
सर्वेपरी स्थान दिया जाना चाहिये, तभी आदिवासियत जीबित रह पायगी ।
स्रोत
:-
1. सेन्सस ऑफ़ इंडिया, 2001
2. RTI reply from Census of
India; F No- 28/1/2013/RTI/SS(April) dated; 07.05.2013
3. Grievances reply of
registration number PRSEC/E/2012/19003 dated 25.11.12, from President
Secretariat with reply number 28/1/2013 (Grievance)-SS dated 3.9.2013
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