हो यूथ मीट 2016



ये मेरा पिछले साल का आंकलन था उसी में लाल रंग से इस साल का जोड़ कर लिख रहा हूँ....
हो यूथ मीट हो समाज के उन बच्चों के लिए एक प्रयास है जो पढ़ने के क्रम में, नौकरी के क्रम में हो समाज के सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, एवं अध्यात्मिक पहलुओं से दूर रहे. उन्हें सांस्कृतिक वातावरण में समाज के पहलुओं की जानकारी के साथ जिम्मेदारी का एहसास भी कराना की हम सभी हो समाज से हैं और समाज के प्रति हमारी एक सोच जरूर होनी चाहिए. अभी तक यह एक वार्षिक कार्यक्रम के रूप में और अलग अलग राज्यों में हो रहा है. इस आयोजन से इसके अलावे निम्न चीजें हो पा रही है : 1. ओंग के सिम्बोल वाला झंडा फहराया जा रहा है, बच्चे यह सीख रहे हैं की हमारा भी एक सिम्बोल है जो हिन्दू, मुसलमान या ईसाइयत से भिन्न है. – इस बार भी यही हुआ.
2. टोयोल दुरंग होता है, जैसे भारत का झंडा फहराया जाता है तो राष्ट्रगान गाया जाता है, वैसे ही हमारा भी है. – इस बार भी हुआ, लेकिन पिछले बार जैसे हॉल में टोयोल दुरंग हुआ, इसे हमें झंडा फहराने वाले जगह पर ही करने का प्रयास करना चाहिए.
3. पूरे कार्यक्रम के दौरान स्टेज से हो में ही अधिकतर बातें रखी जा रही है. – इस बार भी हुआ.
4. पारंपरिक ड्रेस कोड के महत्व को बच्चे समझ और पालन करने की कोशिश कर रहे हैं. – इस बार भी हुआ, बल्कि पिछले बार से ज्यादा उत्साहित युवा थे.
5. बहुत मजबूत तरीके से यह मेसेज जा रहा है की हमें अपने हो समाज के बीच ही शादी करना है. – इस बार भी हुआ, debate शब्द का इस्तेमाल हुआ तो debate ही होता तो अच्छा होता, लेकिन सिर्फ स्टेज से मेसेज दिया गया. कई लोग अपनी बात रखने के लिए कह रहे थे.
6. समाज के कई सांस्कृतिक पहलुओं को विचार समूह के माध्यम से सीखने समझने का प्रयास कर रहे हैं.(उदहारण स्वरुप इस बार आदिवासियों का भी हेयर स्टाइल होता है यह हमारी बच्चियां वहीँ पर सीखी) – इस बार नहीं हुआ.
7. ओत गुरु लाको बोदरा और बिरसा मुन्डा को श्रदा सुमन देने से हमारे गौरवपूर्ण अतीत की उन्हें जानकारी मिल रही है. – इस बार भी हुआ, बल्कि गंगा राम कालूंडीया भी शामिल किये गए जो हमारे जमीन की लड़ाई में शहीद हुए थे.
8. फैशन शो पूर्णत: आदिवासी वेश भूषा का हो रहा है, इससे यह तो पता चल रहा है कि हमारे पारंपरिक परिधानों में भी आधुनिक फैशन को टक्कर देने की क्षमता है. – इस बार भी हुआ, आकर्षण का मुख्य केंद्र भी था और आशानुरूप प्रदर्शन भी.
9. देश के अलग अलग कोने में रह रहे लोग अपने यहाँ हो समाज के बच्चों को कैरिअर से सम्बंधित पूरा सहयोग देने के लिए आगे आ रहे हैं. (उदहारण स्वरुप बंगलौर की यूथ टीम ने अपने यहाँ बच्चों को कैरिअर बनाने के लिए आमंत्रित ही नहीं किया बल्कि उन्हें प्लेसमेंट के लिए आवश्यक सहयोग देने का पूरा खाका प्रेजेंट किया, जो सराहनीय है.) इससे यह मेसेज जा रहा है की समाज हमारा बोन्डिंग एजेंट का काम कर रहा है, और यूथ मीट उसका जरिया. – इस बार नहीं हुआ.
10. दूसरे समाज के लड़के लड़कियों के बीच पले बड़े युवा-युवतियां जब अपने समाज के सैकड़ों युवा-युवतियों से एक साथ मिल रहा है तो भविष्य में जिवोन-जोड़ी की संभावनाओं को भी यहीं तलाश रहा है. इससे मैरेज ड्रेन (लाइक ब्रेन ड्रेन) से बचने का प्रयास सफलतापूर्वक किया जा रहा है. – इस बार भी हुआ, संख्या ज्यादा तो थी, मगर एक दूसरे को पहचानने के मौके कम रहे...स्टेज प्रोग्राम में बाहर से आए युवाओं को समय नहीं मिला और मेल जोल के लिए ग्रुप बना कर कुछ कर सकते थे, लेकिन यह नहीं हो पाया.
11. समाज के बीच चल रहे आंदोलनों एवं आदिवासी हक और अधिकार की जानकारी उन्हें देने का प्रयास हुआ है, ताकि पढ़े लिखे बच्चे आने वाले समय में अन्य समाज की भांति हमारे समाज की बौद्दिक ताकत को अग्रसारित कर सकें और समाज का प्रतिनिधित्व की क्षमता का विकास कालांतर में हो सके. – इस बार भी हुआ, लेकिन यह प्रयास अच्छा होता यदि हमलोग विषयों पर युवाओं से ही राय लेते, और एक्सपर्ट एडवाइस के लिए एक्सपर्ट correct करते, उससे युवाओं का ज्ञान उनके साथ involve होता.
12. अभी तक समाज में यह शिकायत रही है कि पढ़े लिखे लोग रिटैरमेंट के बाद ही समाज का ख्याल करते हैं. लेकिन अर्जुन मुन्दुइया जैसे शख्स भी हैं जिनकी युवा जोश के बिना यह आयोजन असंभव सा था. यानि नौकरी करते हुए भी आज समाज की चिंता हो रही है, यह समाज के लिए बहुत अच्छा संकेत है.(और भी कई नाम हैं, मैं नहीं ले पा रहा हूँ, माफी चाहूँगा, मैं यहाँ मकसद को आउटलाइन कर रहा हूँ) – इस बार भी बुजुर्ग नाम मात्र ही साथ दिखे.
13. इसका रिजल्ट अभी ही मिले ऐसा हम उम्मीद नहीं कर सकते, लेकिन जो नहीं हो पा रहा था, उससे हो पा रहा है की स्थिति में तो आ ही गया है. – युवाओं के रुझान के हिसाब से हमलोग प्रगति कर रहे हैं, इस बार काफी क्षेत्रों से युवा इस इवेंट में शामिल होने के लिए आए थे. लेकिन उनके अभिव्यक्ति को हम नहीं ले पाए.
14. हो समाज के अनुकूल रुतु और बनम वाला ओर्केष्ट्रा भी जबरदस्त आकर्षण का केंद्र रहा, बागुन सुंडी एवं ग्रुप बधाई के पात्र हैं, जिन्होंने इसे मूर्त रूप दिया. – इस बार भी टीम वही थी लेकिन रुतु बनाम का विशेष सांस्कृतिक प्रस्तुति होना चाहिए हालाँकि पिछले बार भी थोड़ा ही हुआ था, इस बार उससे ज्यादा उम्मीद थी.
14. समाज के बीच आदिवासी हो समाज महासभा, एटे तुरतुंग पिटका अखाड़ा, सिदा होरा सुसार अखाड़ा, आदिवासी हो समाज युवा महासभा, मानकी मुन्डा संघ, कोल्हान रक्षा संघ, बले सेयाँ, युवा जुमुर, आदिवासी हो समाज, ईचा खड़कई बांध विरोधी संघ, और अभी जन-संवाद आदि दर्जनों सामाजिक संगठन समाज के विभिन्न मुद्दों को लेकर समाज की अगुवाई कर रहे हैं, उन सामाजिक आंदोलनों को भी बल मिलेगा, जब पूरा समाज एकजुट होगा, ऐसा हम उम्मीद करते हैं.- इस बार भी वही उम्मीद है.
15. खातिरधारी के लिए भुबनेश्वर हो छात्र इकाई की भूरी-भूरी प्रशंसा तो अंत में बनता ही है. बधाई.. उनके लिए भी जिन्होंने पूरा पढ़ा ... जोवर !!! – इस बार भी युवा इकाई ही बधाई की पात्र है, लेकिन हो समाज युवा महासभा, पूर्वी सिंहभूम.

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