सरना धर्म या संस्कृति



    मैं सरना को धर्म नहीं वरन आदिवासी जीवन जीने की पद्दति मानता हूँ. और जिस कोड की बात जनगणना में हो रही है वह वास्तव में पहचान कोड की है. जैसे हिन्दू धर्म नहीं है, सनातन है. कोड हिन्दू का है, सनातन का नहीं. जनगणना के C1 Annexure में भारत देश के अन्दर जिसने भी नाम दर्ज कराया है, उन सबका एक तकनिकी धर्म कोड अंकित होता है.
2011 जनगणना के C1 Annexure में हिन्दू का धर्म कोड 100000 है और सेक्ट कोड 000000 है. सनातन धर्म का 100000(हिन्दू का ही) और सेक्ट कोड 121000 है, जबकि सरना का धर्म कोड 701146 दर्ज होकर है. आदिवासी का धर्म कोड 701002 है. आप जो भी लिखेंगे इस टेबल में लिखा जाएगा. अब कोड की बात तो जनगणना नियमावली में जनगणना आयुक्त के पद में यह शक्ति दी गई है कि प्रकाशन की सुविधा के लिए वह आवश्यक कदम उठाएंगे. इसी शक्ति का इस्तेमाल कर अब तक सरकारों ने हिन्दू, मुसलमान, सिख, इसाई, जैन, बौद्द के लिए कोड 1, 2 आदि आवंटित कर दिया जाता रहा है, जबकि सनातन धर्म को कोई प्रकाशन कोड आवंटित नहीं हुआ है. यह लड़ाई वास्तव में इसी प्रकाशन कोड की लड़ाई है, जो सुविधा के लिए जनगणना कार्यालय आवंटित कर रही है.
इतिहास : देश का प्रथम जनगणना 1872 में हिन्दू, मुसलमान, इसाई, जैन, बौद्द, पारसी, यहूदी की गणना हुई, सरना की नहीं. 1891 में आदिवासियों को प्रकृतिवादी के रूप में जनगणना में जगह दिया गया. 1901, 1911, 1921, 1931 और 1941 में जनजातीय समुदाय का नाम लिखा गया. 1951 में अन्य धर्म की श्रेणी में जनजातीय धर्म का अलग से पहचान को अंकित किया गया. 1961 में अधिसूचित धर्मों(हिन्दू, मुसलमान, सिख, इसाई, जैन, बौद्द) के संक्षिप्त नाम को कोड के रूप में लिखा गया लेकिन जनजातीय समुदाय को अन्य धर्म अंतर्गत विलोपित कर दिया गया. 1971 में सिर्फ अधिसूचित धर्मों का ही रिपोर्ट प्रकाशित किया गया. 1981 में धर्म के पहले अक्षर को कोड के रूप में अंकित किया गया, सरना विलोपित रहा. 2001 और 2011 में अधिसूचित धर्मों को 1 से 6 का कोड दिया गया, जनजातियों को अन्य धर्म की श्रेणी में रखा गया लेकिन कोड प्रकाशित नहीं किया गया.
   अब यदि हम सरना की मान्यता और शुरुआत कैसे हुई? इस पर बात करेंगे तो पाएंगे कि मुन्डा और हो जनजाति में इसके सम्बन्ध में एक पौराणिक कथा चलती है. कहते हैं की आदि काल में जब हमारे पूर्वज अपने दस्तूर के नियमों को बाँध रहे थे, तो उन लोगों के विचारों में काफी भिन्नता थी. कहा जाता है की विचारों में भिन्नता के कारण वे साथ रह कर भी दूर थे. अलग अलग पेड़ों के नीचे बैठ कर निर्णय का प्रयास हुआ पर वे असफल रहे. लेकिन, कोई भी शुभ काम करने से पहले धनुष से तीर छोड़ने का रिवाज था. उसी अनुसार काम के शुभ-अशुभ की जानकारी लेते थे. अपने सांस्कृतिक अनुष्ठानों को पूरा करने हेतु किस पेड़ के पत्ते आदि का इस्तेमाल करना है, जानने के लिए उन्होंने तीर छोड़ा. घने जंगलों को चीरते हुए तीर काफी दूर गया. उसे खोजने पर लोगों को तीर नहीं मिला. वे वापस गाँव को वापस लौटे. आदिवासी बालाएं पत्ते, दतुवन, लकड़ी आदि तोड़ने के लिए 4-6 महीने के अन्तराल में जब जंगल गई तो एक लड़की ने कुछ देख कर अनायास ही बोल उठी कि “(मुंडारी/हो भाषा में) सर-ना बई सर नेन दरू दो सरे: जोमा कडा”. ‘सर’ को मुंडारी/हो में तीर बोलते हैं और ‘ना’ आश्चर्य सूचक शब्द है, अर्थात इस पेड़ ने तीर को निगल लिया है. इस जानकारी को लड़कियों ने गाँव वालों को दिया तो वे तुरंत समझ गए की यह तीर किस मकसद से छोड़ा गया था. चूंकि उसे देख कर लड़की ने जिस शब्द को पहले उच्चारित किया वही शब्द ‘सर-ना=सरना’ हुआ. यहीं से सरना शब्द की शुरुआत हुई.
आज भी हो समाज के बहा पर्व में जयरा में पूजा पाठ कर वापस गाँव आने की प्रक्रिया में साल पेड़ की टहनी जमीन पर गाड़ कर निशाना लगाने का दस्तूर है. जो व्यक्ति इसमें सफल होता है उसे वीर की श्रेणी में रखा जाता है और उसी दिन से जंगल में शिकार की शुरुआत होती है, जो बमुश्किल एक महीने तक चलती है. इससे पता चलता है की सरना वास्तव में एक सांस्कृतिक गतिविधि है जो प्राकृतिक अनुष्ठानों के क्रम में आदिवासियों ने अपनाया.
सांस्कृतिक पहचान एक बहुत ही अमूल्य धरोहर है आदिवासियों के लिए, लेकिन आज हम धर्म और राजनीती के चक्कर में अपने मूल स्वरुप को खो सा दिए हैं, इसीलिए अपनी पहचान की स्पष्ट परिभाषा खोज पाने में असमर्थ होने की स्थिति में हम दूसरों की संस्कृति को अपना समझ और मान कर अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं, आत्महत्या कर रहे हैं.

Comments

Santal(kherwal)se bhi sarna sabd isi se nam nikla hi same to same