अकसर हम सुनते थे कि
आदिवासी प्राकृतिक है, प्रकृति के अनुसार चलता है, प्रकृति के नियमों का पालन करता
है और प्रकृति की सबसे ज्यादा समझ उसके पास है. मगर कैसे? इसी को खोजने के लिए
प्रकृति को observe करने का प्रयास मैंने 2009 -10 में किया. तब मैंने पाया कि आदिवासी
संस्कृति में जैसे नाचना, दाल पीसने का पत्थर, हल चलाना, घड़ा बनाने आदि में
वर्तमान घड़ी के विपरीत दिशा में यानि दाएँ से बाएं चक्कर लगता है. इसके अलावे
आदिवासियों के जन्म संस्कार, विवाह संस्कार और मृत्यु संस्कार में अनुष्ठान भी
दाएँ से बाएं ही पूरा किया जाता है. घर में कई मेहमान यदि आंगन में बैठे हों तो जब
भी पानी दिया जाता है तो दाएँ से बाएं ही आतिथ्य संस्कार पूरा किया जाता है.
आदिवासियों के पूजा अनुष्ठान में भी दाएँ से बाएं ही अर्पण किया जाता है. आखिर
क्यों?
हमने देखा की किचन
गार्डेन में लगे पौधों की लताएं भी ऊपर चढ़ने में दाएँ से बाएं ही चक्कर लगा रही
हैं, बुजुर्गों से पता किया तो पता चला की यदि लताएं घड़ी की सुई की दिशा में चक्कर
लगाए तो वह तीता हो जाता है.
आदिवासी अध्यात्मिक
ज्ञान में जानकारी मिली की हवा में जो चक्रवात उठता है वो यदि दाएँ से बाएं हो तो
वह शगुन होता है, और यदि वर्तमान घड़ी की दिशा में हो तो ग्रह दोष होता है.
बारिश के दिनों में
उफनती नदी को निहार रहा था तो देखा उसमें एक जगह भंवर पैदा हो रहा था और उसकी दिशा
भी दाएँ से बाएं ही थी.
अपने पढ़े हुए ज्ञान
को रिकॉल करने का कोशिश किया तो पाया की सूर्य के चारों ओर पृथ्वी, बुध, बृहस्पत
आदि सभी ग्रह दाएँ से बाएं ही चक्कर लगाते हैं. न्यूक्लिअस के चारों ओर प्रोटोन, इलेक्ट्रान,
न्यूटरोन भी दाएँ से बाएं ही चक्कर लगाते हैं.
फिर भूगोल को याद
किया तो पाया की पृथ्वी भी अपने ध्रुव(axis) में दाएँ से बाएं ही चक्कर लगाती है.
यानि यह प्रकृति की दिशा है, जो दाएँ से बाएं चलती है.
आदिवासियों की सभी
संस्कार संस्कृति, अनुष्ठान की दिशा भी यही है...तभी कहते हैं कि आदिवासी
प्राकृतिक है. जब अपनी सही दिशा की जानकारी हुई तो सोचा फिर ये घड़ी उल्टी क्यों
घूम रही है?? सो घड़ी की दिशा को सही किया...वही आपके सामने आदिवासी प्राकृतिक घड़ी
है...जो सही दिशा में चलती है.
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