आदिवासियों को ठगता मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोल्हान की जनता को जुमला फेंककर प्रधानमंत्री पद की गरिमा को हास्यास्पद बना कर रख दिया । सिर्फ हो में संबोधन कर देने मात्र से हो समाज जुमलों में फंस जाएगा, यह सोचना नरेंद्र मोदी की बहुत बड़ी भूल होगी । पोटो हो, नारा हो एवं बिरसा मुंडा के आंदोलनों को जो जल जंगल जमीन पर स्वायतत्ता की लड़ाई थी, जो वास्तव में बाहरी दिकुओं के दखल को अस्वीकार करने की लड़ाई थी। इस लड़ाई को आजादी का आंदोलन कहना आदिवासियों के इतिहास को दिग्भ्रमित करने की कोशिश है। हमने हमेशा बाहरी लोगों से अपने क्षेत्र में दखल को स्वीकार नहीं करने के कारण स्वभाविक विद्रोह किया है। यह आजादी की लड़ाई इसीलिए नहीं है या नहीं थी क्योंकि कोई हमें गुलाम बना के नहीं रखा था, भारत आजादी से पहले कोल्हान विधि वाहिर क्षेत्र था एक्स्ट्रा टेरिटोरियल एरिया था, लेकिन भारत आजाद होने के बाद अब यह क्षेत्र पांचवी अनुसूची में आता है यह पूर्ण विधि वाहिर तो नहीं है, पर संविधान के अंदर ही एक संविधान के तहत अभी ये पांचवी अनुसूची में रखा गया है। ताकि आदिवासियों को अपने जल जंगल जमीन से, अपने संस्कृति से एवं इस प्रकृति के सानिध्य में खुलकर जीने की आजादी मिल सके। लेकिन आज हमारे आदिवासियों के रहवासों को कंपनी के नाम पर, रोड के नाम पर, खनन के नाम पर, कारखाना के नाम पर, हाथियों के आने-जाने के नाम पर, बाघ अभ्यारण के नाम पर, शहरीकरण के नाम पर छीना एवं लूटा जा रहा है। और यह कोई और नहीं वरण भाजपा नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में यह काम कर रही है । अगर आदिवासियों की जमीन पर कोई पंजा मार नहीं सकता तो इचा डैम बनाने का टेंडर क्यों जारी हुआ?  इसके बनने से तो 123 गांव डूब रहे हैं। नरेंद्र मोदी के भाषणों से कोल्हान की जनता को लगता है कि उनकी करनी और कथनी में मुंह में राम बगल में छुरी वाली कहावत चरितार्थ होती है।
आतंकी मसूद अजहर को भाजपा ने ही छोड़ा था और नरेंद्र मोदी आज उसी को खत्म करने के लिए वोट मांग रहे हैं पाकिस्तान को सबक सिखाने की बात कर रहे थे लेकिन पाकिस्तान में बिरयानी खाने की बात भूल गए. एक तो आतंकी मसूद अजहर से आक्रमण करवाया करवाया जाता है और पाकिस्तानी आई एस आई से आई से भारत में जांच कराते हैं जो एक आतंकी संगठन है . यह तो चाल चरित्र और चेहरा है भाजपा का नरेंद्र मोदी जी ने कोल्हान की जनता को सिर्फ और सिर्फ जुमला दिया है इससे ना हमारा जल जंगल और जमीन बचेगा और ना हम विकास के रास्ते पर आगे बढ़ेंगे वरन जो उनका जुमला था उससे हमारा विनाश निश्चित है।
उन्होंने अपने 40 मिनट के भाषण में सिर्फ़ 30 सेकंड में आदिवासियों जल,जंगल और जमीन की बात की। दुनिया को पता होना चाहिए की आदिवासी प्रकृतिवाद है, और इसी प्रकृतिवाद में जल, जंगल, और जमीन तो है ही साथ ही उनका विकास की मूल धारणा भी यही है। यदि प्रकृतिवाद की बात करेंगे तो कोई भी बाहरी व्यक्ति/सरकार/पूँजीपति आदिवासियों को रहवासों को छेड़छाड़ नहीं कर सकता, इसीलिए ये लोग प्रकृतिवाद पर बात नहीं करते हैं।

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