सोशल मीडिया से जॉन मिरण मुंडा, सुरा बिरुली और मनजीत कोड़ा के व्यक्तिगत रंजिश से उपजा यह विवाद अभी थमा नहीं है, अभी इसके और आयाम देखने को मिलेंगे। आइए इसके कुछ तथ्यों को समझने की कोशिश करें । यह विवाद पिछले लोकसभा चुनाव में तथाकथित रूप से आदिवासी हो समाज युवा महासभा के कुछ पदाधिकारियों द्वारा भाजपा को सहयोग करने के नाम से चिन्हित करते हुए जॉन मिरन मुंडा ने चुनौती दिया की आदिवासी हो समाज युवा महासभा भाजपा का एक इकाई बन गया है। आइए देखते हैं हो समाज महासभा और युवा महासभा की मौजूदा स्ट्रैंथ पदाधिकारियों की क्या कहती है और साथ ही आरोप लगाने वाला जॉन मिरन मुंडा की आज स्थिति क्या है?
आदिवासी हो समाज महासभा जिसके अध्यक्ष कृष्णा बोदरा हैं, इसका रजिस्ट्रशन 2010 में laps हो चुका है, लेकिन अभी भी काम कर रहा है, के पदाधिकारियों की स्थिति(राजनीतिक संदर्भ में)
1. चंद्र मोहन हेम्ब्रम, शिक्षा सचिव--- ये महाशय तो इस लोकसभा में खुद चुनाव भी लड़ लिए, 4000 के आसपास वोट लाए.
2.विश्वनाथ तमसोय, संगठन सचिव, गीता कोड़ा के लिए खुल कर काम किए, इनके बहुत सारे पोस्ट फेसबुक पर देखे जा सकते हैं।
3. लाल सिंह सोए --सरायकेला खरसावां हो महासभा के पदाधिकारी, और भाजपा आदिवासी मोर्चा के भी अध्यक्ष,
सरायकेला खरसावां हो महासभा के कुछ और पदाधिकारी भी भाजपा के सरायकेला इकाई के पदाधिकारी हैं।
4. इंद्रजीत सामड--मनोहरपुर प्रखंड अध्यक्ष, भाजपा राज्य कार्यकरिणीं के सदस्य भी।
आदिवासी हो समाज युवा महासभा :
1. मंजीत कोड़ा --युवा महासभा अनुमंडल पदाधिकारी, भापजा के भी पदाधिकारी
2.सूरा बिरुली - जिला अध्यक्ष, पूर्वी सिंहभूम, भाजपा के लिए काम किए
आदिवासी हो समाज महासभा, रजिस्टर्ड
1. देवेंद्र नाथ चम्पिया- अध्यक्ष, ये पूर्व विधायक भी हैं और कांग्रेस के सक्रिय सदस्य, कांग्रेस के लिए काम किए
2. घनश्याम गागराई - महासचिव, ये भी कांग्रेस के सक्रिय सदस्य, कांग्रेस के लिए काम किए
आरोप लगाने वाला जॉन मिरण मुंडा - अखिल भारतीय क्रांतिकारी महासभा के अध्यक्ष, और कम्युनिस्ट पार्टी की राजनीति करते हैं, 2010 से लगातार चुनाव लड़ रहे हैं।
(यह सूची सतही तौर पर समझाने के लिए दे रहा हूँ, अंदर जाने पर यह जानकारी और बड़ी है, बाकी समझदारी से काम लें)
इस स्थिति में हम सामाजिक सवाल कैसे लेंगे।
राजनीतिक रूप से उपरोक्त सभी संगठनों के पदाधिकारी सक्रिय हैं, फिर सवाल सिर्फ एक संगठन से क्यों? पिछले मोदी सरकार में एक रेपिस्ट मंत्री बन गए थे, तो क्या यह सवाल उठा था कि मोदी सरकार रेपिस्ट है? तो इन पदाधिकारियों की राजनीतिक सक्रियता के लिए पूरे संगठन को दोष देकर हम क्या साबित कर सकते हैं। कहीं हम भी गोदी मीडिया के प्रोपोगंडा के शिकार तो नहीं हो रहे हैं--असली मुद्दों से भटका कर अन्य मुद्दों पर व्यस्त कर कुछ और मकसद पूरा करना हो। सोचना पड़ेगा..भाजपा को कोल्हान में युद्ध करना पड़ेगा, कोल्हान को जीतने के लिए. अन्यथा अभी आसान नहीं है...उपरोक्त सभी संगठन एक होकर भाजपा का साथ दे दे तब भी भाजपा हारेगी..अभी तक हो' समाज की स्थिति यही है..हो समाज को कमतर आंकना...अंग्रजों को भी महंगा पड़ा था, और मोदी को तो पिछला विधानसभा और इस बार का लोकसभा..(दोनों दफा चुनाव प्रचार में आए, लेकिन हार का सामना करना पड़ा)...
इस बार विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा कई हथियार आजमा रही है, उसमें से मुख्यमंत्री कृषि आशीर्वाद योजना भी है, जिसमें सरकार हमारे जमीन का डाटा हमारे लोगों से ले रही है, और उम्मीद है चुनाव से पहले सभी लोगों को इस योजना के नाम पर पैसा 2 से 25 हजार दे भी दे, तब सोचिए जिसे मिलेगा उसका भाजपा के प्रति नरम रवैया होगा तो चुनाव का रिजल्ट भी उसके प्रति नरम ही होगा। मैंने विरोध किया है, अपने गांव बिरुवा टोंटो, और ताँबो में इस योजना का ग्रामीण स्तर पर विरोध हो गया..यदि इस योजना से समाज को नुकसान है तो बताइए सोशल मीडिया के कितने योद्धा अपने अपने गांव को इस योजना के बारे बताने जा रहे हैं, कोशिश करना चाहिए। आपका ये उम्मीद की फलां ये काम कर देगा..समाज को नुकसान पहुंचाएगा। फिर मत लड़ते रहना की किसने किस पार्टी का काम किया। जब समाज लड़ रहा था तब आपकी क्या भूमिका थी/है वह महत्वपूर्ण है।
समाज के नाम पर हम इन्हीं संगठनों से सवाल करते हैं, जबकि समाज एक बहुत बड़ी इकाई है। ऐसे कई संगठन समाज में काम कर सकते हैं। समाज को मजबूत करने के लिए समाज के प्रति हमारा सामाजिक नजरिया ही नहीं वरन समाज में अपने सामाजिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक रिश्तों में जीना भी जरूरी है। और यदि हम ऐसा कर सकते हैं तो विश्वास करिए आपके समाज को कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता है। और यदि हम इस मत में हैं कि फलाना संगठन हमारे समाज को चला लेगा, तो ये हमारी बहुत बड़ी भूल होगी। इसीलिए उठिए और अपने गांव की सामाजिक बैठकों में आइये, यहीं से समाज को दिशा मिलती है। अभिभावक जब मजबूत होगा तो उसके बच्चे भी गलत काम करने का हिम्मत नहीं कर पाएंगे, और यदि अभिभावक निकम्मे निकले तो ऐसे गीदड़ भभकी लगातार मिलते रहेंगे। आप सोचिए समाज कैसे मजबूत होगा।
जॉन मिरण मुंडा एवं आदिवासी हो समाज महासभा, आदिवासी हो समाज युवा महासभा सभी अपना अपना काम अपने अपने तरीके तरीके से कर रहे हैं। सिवाय आदिवासी हो समाज महासभा रजिस्टर्ड के। आदिवासी हो समाज महासभा राजनीति से अछूत है, उपरोक्त सूची को देखकर कौन कह सकता है। सवाल उठाना लोकतंत्र में अच्छा होता है लेकिन सोशल मीडिया में जितने लोग तमाशा देखने के लिए उत्सुक थे, कितनों को हो समाज महासभा की पुराना नियमावली, नए महासभा की नियमावली और हो समाज युवा महासभा की नियमावली, तथा अखिल भारतीय क्रांतिकारी आदिवासी महासभा की नियमावली की जानकारी है? यदि नहीं जानते हैं तो हम किस तरह संगठन के सामाजिकता या किसी अन्य बिन्दु पर सवाल करेंगे।
चाईबासा क्षेत्र में हम लोग काम करते हैं रुंगटा, जैन और शाह का आपसी मतभेद है, लेकिन जब दुनिया के सामने दिखाने की नौबत आती है तो सभी एक साथ खड़े होकर गौशाला का उद्घाटन करने आ जाते हैं। वे अपने समाज में अंदर की लड़ाई को दुनिया को जगजाहिर नहीं करने देते हैं। हमें भी अपनी समस्या व्यक्तिगत हो या संगठन स्तर पर, उसका ढिंढोरा ना पीठ कर, किसी भी एक नियमावली के अधीन क्या इन सवालों का जवाब खोजा जा सकता था? दुर्भाग्य यह है कि जो अंधभक्ति का खेल मौजूदा समय में सोशल मीडिया एवं राजनीतिक पार्टियों द्वारा खड़ा किया गया है उसमें हम भी बहते चले गए और चले जा रहे हैं। यहां ना सामाजिक, ना सांस्कृतिक ना ही धार्मिक आध्यात्मिक पहलुओं पर गंभीरता से मनन किया जा सकता है। खुद तो पालन हम नहीं कर पा रहे हैं लेकिन हम उम्मीद किसी और से जरूर कर रहे हैं, कि उसे यह पालन करना चाहिए। हम जानते हैं की एक अंगुली जब किसी की ओर उठाते हैं तो 3 अंगुली अपने तरफ भी होती है। इन तीन अंगुलियों का जवाब हमें खोजना चाहिए। क्या पता जवाब यहीं हो।
आदिवासी हो समाज महासभा जिसके अध्यक्ष कृष्णा बोदरा हैं, इसका रजिस्ट्रशन 2010 में laps हो चुका है, लेकिन अभी भी काम कर रहा है, के पदाधिकारियों की स्थिति(राजनीतिक संदर्भ में)
1. चंद्र मोहन हेम्ब्रम, शिक्षा सचिव--- ये महाशय तो इस लोकसभा में खुद चुनाव भी लड़ लिए, 4000 के आसपास वोट लाए.
2.विश्वनाथ तमसोय, संगठन सचिव, गीता कोड़ा के लिए खुल कर काम किए, इनके बहुत सारे पोस्ट फेसबुक पर देखे जा सकते हैं।
3. लाल सिंह सोए --सरायकेला खरसावां हो महासभा के पदाधिकारी, और भाजपा आदिवासी मोर्चा के भी अध्यक्ष,
सरायकेला खरसावां हो महासभा के कुछ और पदाधिकारी भी भाजपा के सरायकेला इकाई के पदाधिकारी हैं।
4. इंद्रजीत सामड--मनोहरपुर प्रखंड अध्यक्ष, भाजपा राज्य कार्यकरिणीं के सदस्य भी।
आदिवासी हो समाज युवा महासभा :
1. मंजीत कोड़ा --युवा महासभा अनुमंडल पदाधिकारी, भापजा के भी पदाधिकारी
2.सूरा बिरुली - जिला अध्यक्ष, पूर्वी सिंहभूम, भाजपा के लिए काम किए
आदिवासी हो समाज महासभा, रजिस्टर्ड
1. देवेंद्र नाथ चम्पिया- अध्यक्ष, ये पूर्व विधायक भी हैं और कांग्रेस के सक्रिय सदस्य, कांग्रेस के लिए काम किए
2. घनश्याम गागराई - महासचिव, ये भी कांग्रेस के सक्रिय सदस्य, कांग्रेस के लिए काम किए
आरोप लगाने वाला जॉन मिरण मुंडा - अखिल भारतीय क्रांतिकारी महासभा के अध्यक्ष, और कम्युनिस्ट पार्टी की राजनीति करते हैं, 2010 से लगातार चुनाव लड़ रहे हैं।
(यह सूची सतही तौर पर समझाने के लिए दे रहा हूँ, अंदर जाने पर यह जानकारी और बड़ी है, बाकी समझदारी से काम लें)
इस स्थिति में हम सामाजिक सवाल कैसे लेंगे।
राजनीतिक रूप से उपरोक्त सभी संगठनों के पदाधिकारी सक्रिय हैं, फिर सवाल सिर्फ एक संगठन से क्यों? पिछले मोदी सरकार में एक रेपिस्ट मंत्री बन गए थे, तो क्या यह सवाल उठा था कि मोदी सरकार रेपिस्ट है? तो इन पदाधिकारियों की राजनीतिक सक्रियता के लिए पूरे संगठन को दोष देकर हम क्या साबित कर सकते हैं। कहीं हम भी गोदी मीडिया के प्रोपोगंडा के शिकार तो नहीं हो रहे हैं--असली मुद्दों से भटका कर अन्य मुद्दों पर व्यस्त कर कुछ और मकसद पूरा करना हो। सोचना पड़ेगा..भाजपा को कोल्हान में युद्ध करना पड़ेगा, कोल्हान को जीतने के लिए. अन्यथा अभी आसान नहीं है...उपरोक्त सभी संगठन एक होकर भाजपा का साथ दे दे तब भी भाजपा हारेगी..अभी तक हो' समाज की स्थिति यही है..हो समाज को कमतर आंकना...अंग्रजों को भी महंगा पड़ा था, और मोदी को तो पिछला विधानसभा और इस बार का लोकसभा..(दोनों दफा चुनाव प्रचार में आए, लेकिन हार का सामना करना पड़ा)...
इस बार विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा कई हथियार आजमा रही है, उसमें से मुख्यमंत्री कृषि आशीर्वाद योजना भी है, जिसमें सरकार हमारे जमीन का डाटा हमारे लोगों से ले रही है, और उम्मीद है चुनाव से पहले सभी लोगों को इस योजना के नाम पर पैसा 2 से 25 हजार दे भी दे, तब सोचिए जिसे मिलेगा उसका भाजपा के प्रति नरम रवैया होगा तो चुनाव का रिजल्ट भी उसके प्रति नरम ही होगा। मैंने विरोध किया है, अपने गांव बिरुवा टोंटो, और ताँबो में इस योजना का ग्रामीण स्तर पर विरोध हो गया..यदि इस योजना से समाज को नुकसान है तो बताइए सोशल मीडिया के कितने योद्धा अपने अपने गांव को इस योजना के बारे बताने जा रहे हैं, कोशिश करना चाहिए। आपका ये उम्मीद की फलां ये काम कर देगा..समाज को नुकसान पहुंचाएगा। फिर मत लड़ते रहना की किसने किस पार्टी का काम किया। जब समाज लड़ रहा था तब आपकी क्या भूमिका थी/है वह महत्वपूर्ण है।
समाज के नाम पर हम इन्हीं संगठनों से सवाल करते हैं, जबकि समाज एक बहुत बड़ी इकाई है। ऐसे कई संगठन समाज में काम कर सकते हैं। समाज को मजबूत करने के लिए समाज के प्रति हमारा सामाजिक नजरिया ही नहीं वरन समाज में अपने सामाजिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक रिश्तों में जीना भी जरूरी है। और यदि हम ऐसा कर सकते हैं तो विश्वास करिए आपके समाज को कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता है। और यदि हम इस मत में हैं कि फलाना संगठन हमारे समाज को चला लेगा, तो ये हमारी बहुत बड़ी भूल होगी। इसीलिए उठिए और अपने गांव की सामाजिक बैठकों में आइये, यहीं से समाज को दिशा मिलती है। अभिभावक जब मजबूत होगा तो उसके बच्चे भी गलत काम करने का हिम्मत नहीं कर पाएंगे, और यदि अभिभावक निकम्मे निकले तो ऐसे गीदड़ भभकी लगातार मिलते रहेंगे। आप सोचिए समाज कैसे मजबूत होगा।
जॉन मिरण मुंडा एवं आदिवासी हो समाज महासभा, आदिवासी हो समाज युवा महासभा सभी अपना अपना काम अपने अपने तरीके तरीके से कर रहे हैं। सिवाय आदिवासी हो समाज महासभा रजिस्टर्ड के। आदिवासी हो समाज महासभा राजनीति से अछूत है, उपरोक्त सूची को देखकर कौन कह सकता है। सवाल उठाना लोकतंत्र में अच्छा होता है लेकिन सोशल मीडिया में जितने लोग तमाशा देखने के लिए उत्सुक थे, कितनों को हो समाज महासभा की पुराना नियमावली, नए महासभा की नियमावली और हो समाज युवा महासभा की नियमावली, तथा अखिल भारतीय क्रांतिकारी आदिवासी महासभा की नियमावली की जानकारी है? यदि नहीं जानते हैं तो हम किस तरह संगठन के सामाजिकता या किसी अन्य बिन्दु पर सवाल करेंगे।
चाईबासा क्षेत्र में हम लोग काम करते हैं रुंगटा, जैन और शाह का आपसी मतभेद है, लेकिन जब दुनिया के सामने दिखाने की नौबत आती है तो सभी एक साथ खड़े होकर गौशाला का उद्घाटन करने आ जाते हैं। वे अपने समाज में अंदर की लड़ाई को दुनिया को जगजाहिर नहीं करने देते हैं। हमें भी अपनी समस्या व्यक्तिगत हो या संगठन स्तर पर, उसका ढिंढोरा ना पीठ कर, किसी भी एक नियमावली के अधीन क्या इन सवालों का जवाब खोजा जा सकता था? दुर्भाग्य यह है कि जो अंधभक्ति का खेल मौजूदा समय में सोशल मीडिया एवं राजनीतिक पार्टियों द्वारा खड़ा किया गया है उसमें हम भी बहते चले गए और चले जा रहे हैं। यहां ना सामाजिक, ना सांस्कृतिक ना ही धार्मिक आध्यात्मिक पहलुओं पर गंभीरता से मनन किया जा सकता है। खुद तो पालन हम नहीं कर पा रहे हैं लेकिन हम उम्मीद किसी और से जरूर कर रहे हैं, कि उसे यह पालन करना चाहिए। हम जानते हैं की एक अंगुली जब किसी की ओर उठाते हैं तो 3 अंगुली अपने तरफ भी होती है। इन तीन अंगुलियों का जवाब हमें खोजना चाहिए। क्या पता जवाब यहीं हो।
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