मानकी मुंडाओं का रघुवर कार्यशाला

रघुवर सरकार की विधानसभा चुनाव स्तरीय मानकी मुंडा कार्यशाला संपन्न हुआ। यह कार्यशाला विशुद्ध रूप से कोल्हान को विधानसभा चुनावों में भेदने के लिए आयोजित की गई थी। सभी  सरकारी पदाधिकारियों ने स्पष्ट किया कि मानकी और मुंडा सरकार के अभिन्न अंग हैं। सरकार का आदेश मानकी मुंडा का आदेश है, सरकार की योजनाएं मानकी मुंडा की योजनाएं हैं, सरकार का भूमि अधिग्रहण अधिनियम मानकी मुंडा का भूमि अधिग्रहण अधिनियम है, सरकार का लैंड बैंक मानकी मुंडा का लैंड बैंक है। कोल्हान के हो समाज को अभी जागने की जरूरत है, जिस तरह रघुवर सरकार काम कर रही है उससे मानकी मुंडा समाज से दूर होता जा रहा है। और सरकारी पदाधिकारी बनते जा रहा है। मानकी मुंडाओं से भी अपील है कि समाज का अगुआ बने बने, ना कि सरकार का। पदाधिकारियों ने मानकी मुंडा व्यवस्था को विलकिंग्सन की देन कहा, जो सरासर गलत है। हो समाज की सामाजिक व्यवस्था आदि काल से चली आ रही है, जिसे विलकिंसन ने भी स्वीकार किया और दस्तावेजों में लिख दिया। दस्तावेज से पहले भी हो समाज समाज में सामाजिक व्यवस्था मानकी मुंडा व्यवस्था ही थी। इसी सामाजिक व्यवस्था को सरकारी बनाने का प्रयास लगातार चल रहा है, जो अत्यंत दुःखद है। जबकि मानकी मुंडा हो समाज के कस्टम या दस्तूर से गाइड होते हैं, न कि सरकार के। और सरकार तो आदिवासी भी नहीं, ऐसे में जबरन हो समाज के कस्टम में घुसने की कोशिश घातक होगी।
रघुवर सरकार कहती है कि मानकी मुंडा के अधिकारों से नहीं की जाएगी छेड़छाड़, लेकिन यही सरकार है जो मुंडा के अधीन वाली परती जमीन को अपने लैंड बैंक में जमा कर लिया है। जबकि हो समाज के दस्तूर के हिसाब से गांव में उसी की जमीन है जिसका यहां कुर्सी नामा है। सरकार का यहां कुर्सी नामा नहीं है। कोल्हान का विकास करना ही है तो कोल्हान फंड क्यों रोक कर रखा गया है इसका जवाब रघुवर सरकार को देना चाहिए। इसे रोक कर भी भी सरकार मानकी मुंडा का हक रोक रखा है। इचा डैम को पुनः बनाने के लिए रघुवर सरकार टेंडर जारी कर दिया है, सैकड़ों गांव डूब जाएंगे तो वहां के मानकी मुंडा समाप्त हो जाएंगे, ये कैसा हक मानकी मुंडा को दे रहे हैं कि उनका अस्तित्व ही खत्म हो रहा है।

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