संयुक्त
राष्ट्र चार्टर के उद्देश्यों और सिद्धांतों द्वारा निर्देशित और राज्यों द्वारा
चार्टर के अनुसार आने वाले दायित्वों की पूर्ति में पूरी निष्ठा रखकर यह पुष्टि
करते हुए कि आदिवासी भी अन्य सभी लोगों के समकक्ष हैं, हालांकि यह भी स्वीकार किया जाता है कि सभी लोगों के अधिकार भिन्न होते
हैं, उन्हें अलग ही माना जाए और उसी भाव से उनको उचित सम्मान प्रदान किया जाए।
यह भी पुष्टि करते हुए कि सभी लोग सभ्यताओं और संस्कृतियों की विविधता
तथा समृद्दता में योगदान करते हैं, ये ही मानवता की सभी धरोहर बनाने में सहयोग
करते हैं।
यह भी पुष्टि करते हुए कि देश, नस्ल, धर्म, जाति या संस्कृति के आधार
पर लोगों या किन्ही व्यक्तियों के प्रति भेदभाव के सभी सिद्दाँत, नीतियां और नस्लवादी
रीतियां, विज्ञान की दृष्टि से झूठी, कानूनी दृष्टि से अवैध, नैतिक रूप से निंदनीय
और सामाजिक दृष्टि से अन्यायपूर्ण है।
पुनः पुष्टि करते हुए कि आदिवासी अपने अधिकारों का प्रयोग करने में
किसी भी प्रकार के भेदभाव से मुक्त रहने चाहिए।
यह चिंताजनक है कि आदिवासी लोग उपनिवेशवाद की स्थापना तथा अपने जमीनी
क्षेत्र एवं संसाधनों से वंचित कर दिए जाने के कारण एक लंबे अरसे से अन्याय झेलते
आ रहे हैं, इसी के परिणाम स्वरूप वे अपनी जरूरतों और रूचि के अनुरूप विकास करने के
अपने अधिकार से भी वंचित रह जाते हैं।
आदिवासियों के राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक स्वरूप तथा उनकी संस्कृतियाँ,
इतिहास, अध्यात्मिक परंपराओं और सिद्धांतों से विशेषकर देशों, क्षेत्रों और
संसाधनों पर उनके अधिकारों से आदिवासियों को प्राप्त होने वाले वंशानुगत अधिकारों
को मान्यता एवं प्रोत्साहन देने की तुरंत आवश्यकता को स्वीकार किया गया।
यह भी स्वीकार करते हुए कि
देशों के साथ हुई संधियों, समझौतों और अन्य रचनात्मक व्यवस्थाओं में स्वीकृत,
आदिवासियों के अधिकारों को सम्मान एवं प्रोत्साहन देने की तुरंत आवश्यकता है।
इस तथ्य का स्वागत करते हुए कि आदिवासियाँ राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक
और सांस्कृतिक उन्नति के लिए तथा कहीं भी किसी भी तरह से भेदभाव और दमन को समाप्त
करने के हेतु स्वयं ही एकजुट होते और प्रयास करते हैं।
मान लिया है कि आदिवासियों को और उनके देशों, क्षेत्रों तथा संसाधनों
को प्रभावित करने वाली घटनाओं पर इन आदिवासियों का ही नियंत्रण होने से वे लोग
अपनी संस्थाओं, संस्कृतियों और परंपराओं को बरकरार रखने और उन्हें सशक्त बनाने तथा
उनकी आकांक्षाओं एवं आवश्यकताओं के अनुरूप ही अपने विकास को बढ़ावा दे सकेंगे।
स्वीकार करते हुए कि आदिवासियों की जानकारी, संस्कृतियों और परंपरागत
नीतियों को मान्यता देने से स्थाई एवं समानता आधारित विकास हो सकेगा और परिवेश का
समुचित प्रबंधन भी होगा।
आदिवासियों के देशों और क्षेत्रों को सैनिकीकरण से मुक्त रखने से
विश्व के देशों और लोगों के बीच शांति, आर्थिक एवं सामाजिक प्रगति, आपसी समझ और
मैत्री संबंधों के विकास में योगदान मिलेगा।
आदिवासी परिवारों और समुदायों पर अपने बच्चों का पालन पोषण,
प्रशिक्षण, शिक्षा और कल्याण बच्चों के अधिकारों के अनुरूप करने का संयुक्त
दायित्व स्वीकार किया गया।
यह ध्यान में रखते हुए कि राज्यों और आदिवासियों के बीच संधियों,
समझौते और अन्य रचनात्मक व्यवस्थाएं कुछ हालात में अंतर्राष्ट्रीय सोच, रुचि,
दायित्व एवं चरित्र हो सकती है।
यह भी ध्यान में रखते हुए कि संधियों, समझौते और अन्य
रचनात्मक व्यवस्थाएं और वे संबंध जिनका यह प्रतिनिधित्व करती है, आदिवासियों और
राज्यों के बीच सशक्त भागीदारी का आधार है।
यह स्वीकार करते हुए कि संयुक्त राष्ट्र चार्टर आर्थिक, सामाजिक और
सांस्कृतिक अधिकारों के बारे में अंतरराष्ट्रीय प्रतिज्ञापत्र और नागरिक एवं
राजनीतिक अधिकारों के बारे में अंतरराष्ट्रीय तथा वियाना घोषणा और कार्यवाही
कार्यक्रम, सभी लोगों के आत्मनिर्णय के अधिकारों के मूल महत्व की पुष्टि करते हैं,
जिसके अंतर्गत वे स्वतंत्र रूप से अपनी राजनीतिक स्थिति तय करते हैं और अपने
आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक विकास को आगे बढ़ाते हैं।
इस घोषणा के किसी भी अंश को आधार बनाकर किन्ही भी लोगों को आत्म
निर्णय के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता बशर्ते कि उस अधिकार से
अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन ना होता हो।
इस बात से सहमत हैं कि घोषणा में दिए गए आदिवासी लोगों के अधिकारों
को मान्यता देने से राज्य और आदिवासी लोगों के बीच सद्भावपूर्ण एवं सहयोग के
संबंध मजबूत होंगे जो न्याय, लोकतंत्र, मानवाधिकारों के प्रति सम्मान भेदभाव रहित
और परस्पर विश्वास पर आधारित होंगे।
राज्यों को अंतरराष्ट्रीय समझौतों के अनुरूप आदिवासियों के प्रति वे
अपने सभी दायित्वों का विशेषकर मानव अधिकारों से संबद्ध दायित्वों का, संबद्ध
लोगों के परामर्श एवं सहयोग से पालन करेंगे और उन्हें लागू करेंगे।
इस बात पर जोर देते हुए कि आदिवासियों के अधिकारों को बढ़ावा देने और
उनके संरक्षण में संयुक्त राष्ट्र ने महत्वपूर्ण एवं निरंतर भूमिका निभाई है। यह
विश्वास करते हुए कि यह घोषणा आदिवासी के अधिकारों को मान्यता, बढ़ावा और संरक्षण
देने की दिशा में तथा क्षेत्र में संयुक्त राष्ट्र के संबद्ध गतिविधियों के विकास
में एक और महत्वपूर्ण कदम है।
इस बात को मानते और इसकी पुष्टि करते हुए कि आदिवासियों को अंतरराष्ट्रीय
कानून के तहत सभी मानव अधिकारों का बिना किसी भेदभाव के पूरा अधिकार है। और आदिवासियों
को ऐसे सामूहिक अधिकार भी प्राप्त हैं, जो उनके अस्तित्व, कल्याण, एवं समन्वित विकास
के लिए अपरिहार्य हैं।
यह मानते हुए कि विभिन्न क्षेत्रों और विभिन्न देशों में आदिवासियों
की स्थिति भिन्न है, और यह कि राष्ट्रीय और क्षेत्रीय विशेषताओं तथा विभिन्न ऐतिहासिक
और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए।
विधिवत घोषणा की जाती है कि आदिवासियों के अधिकारों के बारे में नीचे
दी जा रही संयुक्त राष्ट्र घोषणा एक मानक उपलब्धि के रूप में सहयोग या भागीदारी और
परस्पर सम्मान की भावना से लागू की जाएगी।
अनुच्छेद 1
आदिवासियों को सामूहिक रूप से अथवा व्यक्तिगत
तौर पर उन सभी मानवाधिकारों और मूल स्वतंत्रताओं का पूरी तरह उपभोग करने का अधिकार
है, जो संयुक्त राष्ट्र चार्टर मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा और अंतर्राष्ट्रीय
मानव अधिकार अधिकार कानून से स्वीकार किए गए हैं।
अनुच्छेद 2
आदिवासी भी अन्य सभी लोगों एवं
व्यक्तियों की भांति ही स्वतंत्र और बराबर है, तथा उन्हें अपने अधिकारों विशेषकर उनके
आदिवासी होने के कारण मिले अधिकारों को इस्तेमाल करने में किसी भी तरह से भेदभाव
से मुक्त रहने का अधिकार है।
अनुच्छेद 3
आदिवासियों को आत्मनिर्भर का अधिकार है, इस
अधिकार से ही वे अपने राजनीतिक स्थिति स्वतंत्र रूप से तय कर सकते हैं और अपने
आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक विकास के प्रयास कर सकते हैं।
अनुच्छेद 4
अपने आत्मनिर्णय के अधिकार का इस्तेमाल
करने में आदिवासियों को अपने आंतरिक और स्थानीय मामलों में स्वायत्ता अथवा स्वायत्त
सरकार स्थापित करने का तथा उनके स्वायत्त क्रियाकलाप के लिए वित्तीय साधन जुटाने
का अधिकार भी है।
अनुच्छेद 5
आदिवासियों को अपनी विशिष्ट राजनीतिक,
आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संस्थानों को बनाए रखने और उन्हें सशक्त बनाने का
अधिकार होगा, और साथ ही यदि वे चाहें तो अपने राज्य के राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक
एवं सांस्कृतिक जीवन में पूरी तरह भाग लेने का अधिकार भी बरकरार रहेगा।
अनुच्छेद 6
प्रत्येक आदिवासी व्यक्ति को
राष्ट्रीयता का अधिकार प्राप्त होगा ।
अनुच्छेद 7
1- आदिवासियों
को व्यक्ति के जीवन, शारीरिक व मानसिक निष्ठा, स्वतंत्रता और सुरक्षा का अधिकार
होगा।
2- आदिवासियों
को विशिष्ट लोगों की भांति स्वतंत्रता, शांति और सुरक्षा के साथ जीने का सामूहिक
अधिकार होगा और उनके प्रति किसी भी तरह के नरसंहार या किसी अन्य प्रकार की हिंसक
कार्रवाई नहीं की जा सकेगी, जिनमें किसी समूह के बच्चों को जबरन किसी अन्य समूह
में शामिल करना भी शामिल है।
अनुच्छेद 8
1- आदिवासियों
और व्यक्तियों को अधिकार होगा कि उनकी संस्कृति का ज़बरन विलय अथवा नष्ट ना किया
जाए
2 राज्य ऐसा प्रभावी तंत्र उपलब्ध कराएंगे जो
निम्नलिखित की रोकथाम और निराकरण करेगा :
(क) ऐसा कोई कार्य जिसका उद्देश्य अथवा परिणाम
उन्हें उनकी विशिष्ट पहचान या उनके सांस्कृतिक मूल्यों या जातीय पहचान से वंचित
करना हो ;
ख) ऐसा कोई कार्य जिसका उद्देश्य अथवा परिणाम
उन्हें उनके देश, क्षेत्रों या संसाधनों से वंचित (बेदखल) करना हो ;
ग) किसी भी प्रकार का जबरन आबादी स्थानांतरण
जिसका उद्देश्य अथवा प्रभाव उनके किसी भी अधिकार का अतिक्रमण या उल्लंघन करना हो
घ) किसी भी प्रकार का जबरन विलय या समन्वय ;
ङ्) उनके विरुद्ध नस्ल आधारित अथवा जातिगत
भेदभाव को बढ़ावा देने के इरादे या उकसाने के इरादे से किसी भी तरह का दुष्प्रचार ;
अनुच्छेद 9
आदिवासियों का अधिकार होगा देश कि सम्बद्द
परम्पराओं और रीतियों के अनुसार किसी भी आदिवासी समुदाय या देश को अपना लें, इस अधिकार
के प्रयोग से किसी भी प्रकार का भेदभाव उत्पन्न नहीं होना चाहिए।
अनुच्छेद 10
आदिवासियों को उनके देश या क्षेत्र से
जबरन हटाया नहीं जाएगा। सम्बद्द आदिवासियों की स्वतंत्रता एवं लिखित पूर्व सहमति
के बिना कोई पुन: आवंटन नहीं होगा और उसके बाद भी न्यायसंगत एवं उचित मुआवजा देने
का और हो सके उनके वापस लौट सकने के विकल्प का अनुबंद भी होना चाहिए।
अनुच्छेद 11
1- आदिवासियों
को अपनी सांस्कृतिक परंपराएं और रीति-रिवाज अपनाने और उन्हें अधिक सशक्त बनाने का
अधिकार है। इसमें उनका यह अधिकार भी शामिल होगा कि वह पुरातत्व की दृष्टि से
महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक स्थल, कला वस्तुओं, डिज़ाइनों, समारोहों, आयोजनों, प्रौद्योगिकियों
और दृश्य का मंचन कला तथा साहित्य सहित अपनी संस्कृति की सभी प्राचीन, वर्तमान और
भावी अभिव्यक्तियों की देखभाल, संरक्षण और विकास कर सकें;
2- राज्य
आदिवासियों के कानूनों, परंपराओं और रीति-रिवाजों का उल्लंघन करके अथवा उनकी
स्वतंत्र लिखित एवं पूर्व सहमति के बिना उनकी सांस्कृतिक, धार्मिक और आध्यात्मिक
संपदा के संबंध में उनकी शिकायत को, उनके ही सहयोग से पुन: प्रतिष्ठित और विकसित
करके दूर करके, दूर करने के उद्देश्य से शिकायत निवारण तंत्र उपलब्ध कराएगा;
अनुच्छेद 12
1- आदिवासी
लोगों को अपनी आध्यात्मिक और धार्मिक परंपराओं, रीतिरिवाजों और समारोहों को मनाने,
विकसित करने और पढ़ाने-लिखाने का अधिकार होगा। अपने धार्मिक एवं सांस्कृतिक स्थलों
के रखरखाव, संरक्षण एवं पूरी गोपनीयता से वहां पहुंचाने, अपनी पूजा की चीजों को
प्रयोग एवं नियंत्रित करने तथा अपने नश्वर अवशेषों को अपने यहां प्रत्यवर्तित कराने
का अधिकार होगा।
2- राज्य
पूजा-अर्चना से जुड़ी वस्तुओं और मानव अवशेषों तक पहुंच उपलब्ध कराने और/या उन्हें
प्रत्यवर्तित कराने का निष्पक्ष, पारदर्शी एवं प्रभावी तंत्र सम्बद्द आदिवासियों
के सहयोग से विकसित करेंगे। अनुच्छेद 13
1- आदिवासियों
को अधिकार होगा कि वह अपने इतिहास, भाषाएं, मौखिक(अलिखित) सिद्दाँत, लेखन
प्रणालियां और साहित्य को फिर से सशक्त बना सकें, प्रयोग कर सकें और अपनी भावी
पीढ़ियों को सौंप सकें तथा समुदायों, स्थानों और व्यक्तियों के परंपरागत नाम रखे रहें।
2- राज्य
प्रभावी उपाय करके सुनिश्चित करेंगे कि उनका यह अधिकार सुरक्षित रहे और यह भी सुनिश्चित
करेंगे कि राजनीतिक, कानूनी और प्रशासनिक गतिविधियों को आदिवासी लोग समझ सके और उन्हें
भी इन गतिविधियों से समझा जाए तथा जहां जरूरी हो वहां दुभाषियों की अथवा कोई अन्य उपयुक्त
व्यवस्था की जाए।
अनुच्छेद 14
1- आदिवासियों
को अधिकार है कि वे अपनी ही भाषा में तथा पढ़ने-पढ़ाने की अपनी संस्कृतिक
पद्धतियों के अनुरूप उपयुक्त तरीके से शिक्षा उपलब्ध कराने वाली शिक्षा प्रणालियों
और संस्थान स्थापित करके उनका नियंत्रण भी अपने पास ही रखें।
2- आदिवासियों
विशेषकर बच्चों को बिना किसी भेदभाव के राज्य के सभी स्तरों की और सभी प्रकार की
शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार है।
3- राज्य
आदिवासियों के सहयोग से सभी आदिवासियों, खासकर बच्चों के लिए जिनमें अपने समुदायों
से बाहर रहने वाले बच्चे भी शामिल है, यथासंभव प्रयास करेगा कि वह अपनी संस्कृति
के अनुरूप और अपनी भाषा में दी जाने वाली शिक्षा का पहुंच प्राप्त कर सकें।
अनुच्छेद 15
१- आदिवासियों
को अपनी संस्कृति, परंपरा, इतिहास और आकांक्षाओं की गरिमा और विविधता बनाए रखने का
अधिकार होगा जो उपयुक्त रूप से शिक्षा और सार्वजनिक जानकारी को प्रतिबिंबित करेगा।
२- राज्य
सम्बद्द आदिवासियों के सहयोग एवं परामर्श से ऐसे प्रभावी उपाय करेंगे कि
पूर्वाग्रह का सामना किया जा सके और भेदभाव समाप्त हो सके तथा आदिवासी लोगों और
समाज के अन्य वर्गों के बीच संयम, आपसी समझ और सद्भावनापूर्ण संबंध विकसित हो।
अनुच्छेद 16
1- आदिवासियों
को अधिकार है कि वह अपनी भाषा में अपने मीडिया(प्रचार माध्यम) स्थापित कर सकें और
बिना किसी भेदभाव के हर किस्म के गैर आदिवासी मीडिया में भी पहुंच प्राप्त कर सकें;
2- राज्य
ऐसे प्रभावी उपाय करेंगे जिससे सुनिश्चित हो सके कि सरकारी स्वामित्व वाले मीडिया
में आदिवासी सांस्कृतिक विविधता को समुचित रूप से प्रतिबिंबित किया जा सके,
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के प्रति बिना किसी पूर्वाग्रह के
राज्यों को निजी स्वामित्व वाले मीडिया को प्रोत्साहित करना चाहिए कि वह आदिवासी
संस्कृतिक विविधता को समुचित रूप से प्रचारित करें
अनुच्छेद 17
1- आदिवासियों
और व्यक्तियों को लागू अंतरराष्ट्रीय और घरेलू श्रम कानूनों के अंतर्गत पदत्त सभी
अधिकारों का पूरी तरह उपभोग करने का अधिकार होगा;
2- आदिवासियों
के परामर्श और सहयोग से राज्य ऐसे विशिष्ट उपाय करेंगे कि आदिवासी बच्चों को
आर्थिक शोषण तथा ऐसा कोई भी काम करने से बचाया जा सके जो उनके स्वास्थ्य के लिए
खतरनाक हो सकता हो या जिससे उनकी शिक्षा में बाधा पड़ती हो या उनके शारीरिक,
मानसिक, आध्यात्मिक, नैतिक अथवा सामाजिक विकास हो, तथा यह भी ध्यान रखा जाए की वे किन
पहलुओं से प्रभावित हो सकते हैं और उनके सशक्तिकरण के लिए शिक्षा कितनी आवश्यक है।
3- आदिवासियों
को अधिकार होगा कि वे श्रम संबंधी किसी भेदभाव के शिकार ना बनाए जा सकें, जिसमें
रोजगार या वेतन आदि का भेदभाव शामिल है।
अनुच्छेद 18
आदिवासियों को अधिकार होगा कि उन
मामलों में निर्णय प्रक्रिया में उनकी हिस्सेदारी हो जिनसे उनके अधिकारों पर असर
पड़ सकता है, इसके
लिए उनके अपने तौर तरीके से उनके ही द्वारा चुने गए प्रतिनिधि निर्णय प्रक्रिया
में शामिल किए जा सकते हैं, और साथ ही वे अपनी स्वंय की आदिवासी निर्णय प्रक्रिया
भी स्थापित कर सकते हैं।
अनुच्छेद 19
राज्य सम्बद्द आदिवासियों से उनके ही
प्रतिनिधि संस्थानों के जरिए पूरी ईमानदारी से परामर्श और सहयोग करेंगे ताकि उनको
प्रभावित करने वाले विधाई अथवा प्रशासनिक उपाय लागू करने से पहले उनकी स्वतंत्र और
लिखित पूर्व सहमति ली जा सके।
अनुच्छेद 20
1- आदिवासियों
को अधिकार होगा कि वे अपने राजनीतिक अपने राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक प्रणालियां
स्थापित एवं विकसित कर सकें ताकि वे अपने जीवन निर्वाह और विकास का अपने साधनों(तौर-तरीकों)
से आनंद उठाने में सुरक्षित रहें तथा अपनी सभी परंपराओं और अन्य आर्थिक गतिविधियों
में स्वतंत्र रूप से शामिल हो सके।
2- जो
आदिवासी जीवन निर्वाह और विकास के साधन से वंचित है, उन्हें न्याय संगत एवं निष्पक्ष
समाधान/मुआवजा पाने का अधिकार होगा;
अनुच्छेद 21
1- आदिवासियों
को बिना किसी भेदभाव के अधिकार होगा कि अपनी आर्थिक एवं सामाजिक हालात सुधार सकें
जिसमें शिक्षा का क्षेत्र, रोजगार, व्यवसायिक प्रशिक्षण, और पुनर्प्रशिक्षण,
आवास, साफ-सफाई,
स्वास्थ्य और
सामाजिक सुरक्षा शामिल है;
2- राज्य
उनकी आर्थिक सामाजिक हालात में निरंतर सुधार सुनिश्चित करने के वास्ते प्रभावी
उपाय करेंगे और जहां जरूरी लगेगा, विशेष उपाय करेंगे, आदिवासी बृदजनों, महिलाओं,
युवाओं, बच्चों और विकलांगों के अधिकारों और खास जरूरतों पर विशेष ध्यान दिया
जाएगा।
अनुच्छेद 22
1- इस
घोषणा को कार्यान्वित करते समय आदिवासी बृदजनों, महिलाओं, युवाओं, बच्चों और
विकलांगों के अधिकारों और खास जरूरतों पर विशेष ध्यान दिया जाएगा।
2- आदिवासियों
के सहयोग से राज्य यह सुनिश्चित करने के उपाय करेंगे कि आदिवासी महिलाएं और बच्चे
किसी भी प्रकार की हिंसा और भेदभाव से पूरी तरह सुरक्षित एवं आश्वस्त रहें;
अनुच्छेद 23
आदिवासियों को अधिकार है कि वे विकास
के अधिकार को इस्तेमाल करने की प्राथमिकताएं और नीतियां तय कर सकें, विशेषकर
आदिवासियों को स्वयं को प्रभावित करने वाले स्वास्थ्य, आवास और अन्य आर्थिक, सामाजिक
कार्यक्रम निर्धारित करने का अधिकार होगा, और जहां तक संभव हो वे ऐसे कार्यक्रमों
को अपने ही संस्थाओं के माध्यम से लागू करेंगे।
अनुच्छेद 24
1- आदिवासियों
को अपनी परंपरागत औषधियां तथा स्वास्थ्य पद्धतियां बनाए रखने का अधिकार होगा,
जिनमें उनके महत्वपूर्ण औषधीय पौधों, पशुओं और खनिजों का संरक्षण शामिल है।
आदिवासी व्यक्तियों को बिना किसी भेदभाव के सभी सामाजिक एवं स्वास्थ्य सेवा
प्राप्त करने का भी अधिकार है ।
2- आदिवासी
व्यक्तियों को शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य के सर्वोच्च प्राप्य स्तर का सुख लेने
का अधिकार है। राज्य इस अधिकार का पूर्ण क्रियान्वयन बनाए रखने की दृष्टि से
आवश्यक उपाय करेंगे।
अनुच्छेद 25
आदिवासियों को परंपरागत रूप से अधिकृत
और प्रयोग की जा रही जमीनों, भूखंडों, जल क्षेत्रों और तटीय सागरों तथा अन्य
संसाधनों पर अपना विशिष्ट आध्यात्मिक संबंध बनाए रखने और उसे मजबूत करने का अधिकार
है, और साथ ही इस बारे में अपनी भावी पीढ़ियों के प्रति दायित्व निभाने का भी
अधिकार है।
अनुच्छेद 26
1- आदिवासियों
को उन जमीनों, राज्य क्षेत्रों और संसाधनों पर अधिकार होगा जो परंपरा से उनके
स्वामित्व, कब्जे या अन्य प्रकार के इस्तेमाल अथवा नियंत्रण में रही है।
2- आदिवासियों
को वे जमीने, राज्यक्षेत्र और संसाधन स्वामित्व में लेने, इस्तेमाल करने, उन्हें
विकसित करने अथवा नियंत्रण में रखने का अधिकार है, जिन पर उनका परंपरागत स्वामित्व
है या किसी परंपरागत कब्जे या इस्तेमाल से उनके पास है, या किसी भी अन्य प्रकार से
उनके नियंत्रण में है।
3- राज्य
इन जमीनों, क्षेत्रों और संसाधनों के लिए कानूनी मान्यता एवं संरक्षण प्रदान
करेंगे। इस प्रकार की मान्यता देते समय संबद्ध आदिवासी लोगों के रीति-रिवाजों,
परंपराओं और जमीन की पट्टेदारी व्यवस्था का पूरा सम्मान किया जाएगा।
अनुच्छेद 27
राज्य सम्बद्द आदिवासी लोगों की सहमति
एवं सहयोग से एक निष्पक्ष, स्वतंत्र, न्याय संगत, खुली और पारदर्शी प्रक्रिया स्थापित
करेंगे जिसमें आदिवासियों के कानूनों, परंपराओं, रीति-रिवाजों और भू-पट्टे दारी
व्यवस्थाओं को समुचित मान्यता दी जाएगी तथा आदिवासियों की जमीनों, क्षेत्रों और संसाधनों पर उनके
अधिकारों को मान्यता देकर स्वीकार किया जाएगा, जिनमें वे जमीने, क्षेत्र और संसाधन भी शामिल हैं, जिन
पर परंपरा से ही आदिवासियों का अधिकार, कब्जा, इस्तेमाल या नियंत्रण रहा है। आदिवासियों को इस
प्रक्रिया में शामिल होने का भी अधिकार है।
अनुच्छेद 28
1- आदिवासियों
का अधिकार होगा कि अपनी शिकायत का समाधान कराने के लिए प्रत्यर्पण सहित विभिन्न
उपाय अपनाएं और ऐसा संभव ना हो तो जिन जमीनों, क्षेत्रों और संसाधनों पर उनका
परंपरागत स्वामित्व या अन्य प्रकार का कब्जा अथवा इस्तेमाल/नियंत्रण हो और जिन्हें
उनकी स्वतंत्र, लिखित और पूर्व सहमति के बिना जब्त कर लिया गया हो या कब्जे में ले
लिया गया हो या नुकसान पहुंचाया गया हो, उनका समुचित न्याय संगत मुआवजा दिया जाए;
2- संबद्ध
लोगों के साथ स्वतंत्र रूप से समझौता किए बिना मुआवजा, जमीनों, क्षेत्रों और
संसाधनों के रूप में ही समानता, आकार एवं गुणवत्ता पर आधारित होगा या धन के रूप
में मुआवजा दिया जाएगा या फिर कोई अन्य उपयुक्त समाधान उपलब्ध कराया जाएगा।
अनुच्छेद 29
1- आदिवासियों
को अधिकार होगा कि अपनी जमीनों एवं संसाधनों के पर्यावरण एवं उत्पादक क्षमता का
संरक्षण कर सकें। राज्य इस प्रकार के संरक्षण और बचाव के लिए बिना किसी भेदभाव के,
आदिवासियों के लिए सहायता कार्यक्रम बनाकर उन्हें लागू करेंगे
2- राज्य
यह सुनिश्चित करने के उपाय करेंगे कि आदिवासियों की जमीनों और क्षेत्रों में उन
लोगों की स्वतंत्र, लिखित एवं पूर्व सहमति के बिना खतरनाक सामग्रियों का किसी भी
प्रकार का भंडारण अथवा निपटान नहीं किया जाएगा;
3- राज्य
आवश्यक होने पर, यह सुनिश्चित करने के भी प्रभावी उपाय करेंगे कि ऐसे सामग्री से
प्रभावित आदिवासियों द्वारा स्वास्थ्य की निगरानी, देखभाल और बहाली के कार्यक्रम
उपयुक्त रूप में क्रियान्वित किए जाएं।
अनुच्छेद 30
1- आदिवासियों
के देशों या क्षेत्रों में सैनिक गतिविधियां नहीं होंगी जब तक कि व्यापक जनहित के
कारण अथवा स्वतंत्र सहमति के आदिवासी स्वयं इस आशय का अनुरोध ना करें;
2- आदिवासियों
की जमीनों या क्षेत्रों का सैनिक गतिविधियों के वास्ते इस्तेमाल करने से पहले
राज्य सम्बद्द आदिवासियों के साथ मिलकर उपयुक्त प्रक्रिया के जरिए व्यापक एवं
प्रभावी विचार विमर्श करेंगे।
अनुच्छेद 31
1- आदिवासियों
को अधिकार होगा कि वे अपनी सांस्कृतिक धरोहर, परंपरागत ज्ञान और पारंपरिक
सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों तथा अपने विज्ञान, प्रद्द्योगिकियों तथा संस्कृतियों की
अभिव्यक्ति को बरकरार, सुरक्षित
एवं नियंत्रित रख सकें, जिसमें
मानवीय एवं वंशानुगत संसाधन, बीज, औषधीयां, वनस्पतियां एवं जड़ी बूटियों के गुण
दोषों के प्रयोग, मौखिक परंपरा, साहित्य, शैलियां, खेल-कूद और परंपरागत खेल कौशल
(शिकार) तथा दृश्य एवं मंचन कलाएं शामिल है। उन्हें या भी अधिकार होगा कि ऐसे
सांस्कृतिक धरोहर, पारंपरिक ज्ञान और परंपरागत संस्कृतिक अभिव्यक्तियों पर अपनी
बौद्धिक संपदा को बरकरार, नियंत्रण में सुरक्षित रख सकें और इनका विकास कर सकें;
2- आदिवासियों
की सहमति से राज्य इन अधिकारों को मान्यता देने और उनका सुरक्षित प्रयोग सुनिश्चित
करने के प्रभावी उपाय करेंगे।
अनुच्छेद 32
1- आदिवासियों
को अधिकार होगा कि वे अपनी जमीन, क्षेत्रों तथा संसाधनों के विकास की
प्राथमिकताएं एवं नीतियां तय कर सकें;
2- राज्य
आदिवासियों के देशों, क्षेत्रों या अन्य संसाधनों को प्रभावित करने वाली किसी भी परियोजना
को स्वीकृत करने से पहले उनकी स्वतंत्र एवं सूचित सहमति प्राप्त करने के उद्देश्य
से उनके ही प्रतिनिधि संस्थाओं के माध्यम से आदिवासी लोगों के साथ परामर्श एवं
सहयोग करेंगे;
3- राज्य
की ऐसी किसी भी गतिविधि के लिए न्याय संगत और निष्पक्ष क्षतिपूर्ति का प्रभावी
तंत्र उपलब्ध कराएंगे, साथ ही पर्यावरणीय, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक आध्यात्मिक
दृष्टि से हो सकने वाले प्रतिकूल प्रभाव को रोकने के भी प्रयास करेंगे।
अनुच्छेद 33
1- आदिवासियों
का अधिकार होगा कि वे अपने रीति-रिवाजों और परंपराओं के अनुरूप अपनी पहचान या
सदस्यता निर्धारित कर सकें, इससे आदिवासियों के इन राज्यों की नागरिकता
पाने के अधिकार पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा जहां यह रहते हैं;
2- आदिवासियों
को अपने तौर-तरीकों के हिसाब से अपनी संस्थाओं की संरचना तय करने और उनकी सदस्यता
सदस्यता चुनने का अधिकार होगा।
अनुच्छेद 34
आदिवासी लोगों को अधिकार है कि वे अपने
संस्थागत ढांचे और उनके विशिष्ट तौर-तरीकों, आध्यात्मिक परम्पराओं, क्रियाकलाप,
धार्मिक कृत्यों और यदि हो तो न्यायिक व्यवस्था या रितियों को अंतरराष्ट्रीय
मानवाधिकार मानकों के अनुरूप प्रेरित, विकसित और सुरक्षित रखने के उपाय कर सकें।
अनुच्छेद 35
आदिवासियों का अधिकार है कि वे अपने
समुदायों के प्रति सभी व्यक्तियों के दायित्व तय कर सकें।
अनुच्छेद 36
आदिवासियों और खासकर अंतरराष्ट्रीय
सीमाओं से विभाजित हुए आदिवासी लोगों को अपने यहां रहने वालों और सीमाओं के पार
रहने वालों के साथ आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सामाजिक
उद्देश्यों से संपर्क, संबंध और सहयोग बनाए रखने और आगे बढ़ाने का अधिकार है।
अनुच्छेद 37
1- आदिवासियों
को राज्यों या उनके उत्तराधिकारियों के साथ की गई संधियों, समझौतों और अन्य
रचनात्मक व्यवस्थाओं को मान्यता दिलाने, उनका परिपालन कराने और उन्हें लागू कराने
का अधिकार है।
2- घोषणा में शामिल किसी भी अंश को आदिवासियों के इन
संधियों, समझौतों और अन्य रचनात्मक व्यवस्थाओं में निहित अधिकारों को हल्का करने या
उनका महत्व कम करने वाला नहीं माना जाना चाहिए।
अनुच्छेद 38
आदिवासियों के
साथ परामर्श और सहयोग से इस घोषणा की उद्देश्य की पूर्ति के लिए विधाई उपायों सहित
राज्य सभी उपयुक्त प्रयास करेंगे।
अनुच्छेद 39
आदिवासियों को अधिकार होगा कि वे इस
घोषणा में उल्लेखित अधिकारों का इस्तेमाल कर सकने के उद्देश्य से राज्यों से
आर्थिक एवं तकनीकी सहायता प्राप्त कर सकें और उसके लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग भी ले
सकें।
अनुच्छेद 40
आदिवासियों को अधिकार है कि राज्यों
एवं अन्य पक्षों के साथ चल रहे टकराव और विवादों का समाधान न्याय संगत और निष्पक्ष
तरीकों से करने के वास्ते तुरंत निर्णय ले सकें और साथ ही अपने व्यक्तिगत एवं
सामूहिक अधिकारों के किसी भी प्रकार के उल्लंघन का प्रभावी उपचार कर सकें। इस
प्रकार के निर्णय में सम्बद्द आदिवासी लोगों के रीति-रिवाजों, परंपराओं, नियमों
एवं कानूनी प्रणालियों तथा अंतरराष्ट्रीय मनवाधिकारों पर समुचित ध्यान दिया जाएगा।
अनुच्छेद 41
संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के अंग और
उसकी विशेष एजेंसियां तथा अन्य अंतर-सरकारी संगठन वित्तीय सहयोग और तकनीकी सहायता
के द्वारा इस घोषणा के प्रावधानों को पूर्णतया क्रियान्वित कराने में योगदान देंगे।
आदिवासी लोगों को प्रभावित करने वाले मामलों में उनका सहयोग सुनिश्चित करने के
तौर-तरीके भी तय किए जाएंगे।
अनुच्छेद 42
संयुक्त राष्ट्र आदिवासियों के मुद्दों
के बारे में स्थाई मंच सहित उसकी संस्थाएं और राष्ट्र स्तर की एजेंसियां समेत
विशेष एजेंसियां और राज्य इस घोषणा के प्रावधानों को पूरा सम्मान देते हुए इनके
पूर्ण क्रियान्वयन के लिए प्रयास करेंगे तथा इस घोषणा की प्रभाविकता आँकने के उपाय
भी अपनाएंगे।
अनुच्छेद 43
इसमें शामिल अधिकार दुनियाभर के आदिवासियों
के अस्तित्व, मान-सम्मान और कल्याण का न्यूनतम स्तर है।
अनुच्छेद 44
इसमें शामिल सभी अधिकारों और
स्वतंत्रताओं की सभी पुरुष और महिला आदिवासियों के लिए पक्की गारंटी होगी।
अनुच्छेद 45
इस घोषणा के किसी भी अंश या प्रावधान
को आदिवासियों के मौजूदा या भावी अधिकारों को कम या समाप्त करने का आधार न माना
जाए जाए।
अनुच्छेद 46
1- इस
घोषणा में शामिल किसी अंश या प्रावधान का अर्थ यह कदापि न लगाया जाए कि किसी भी
राज्य, लोगों, समूह या व्यक्ति को ऐसा कोई अधिकार मिल जाएगा कि वह संयुक्त राष्ट्र
चार्टर के विरुद्ध कोई कार्य कर सकें अथवा ऐसे किसी भी कार्य को मान्यता या
प्रोत्साहन मिल जाएगा, जिससे सार्वभौम एवं स्वतंत्र राज्यों की राज्यक्षेत्रीय
अखंडता या राजनीतिक एकता पर पूरी तरह अथवा आंशिक रूप से प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
2- प्रस्तुत
घोषणा में दिए गए अधिकारों को इस्तेमाल करते वक्त सभी के मानवाधिकारों और मूल
अधिकारों का सम्मान किया जाएगा। इस घोषणा में निहित अधिकारों का इस्तेमाल करते समय
केवल कानून द्वारा निर्धारित और अंतरराष्ट्रीय मनवाधिकारों के अनुरूप सीमाएं ही लागू
होगी। इस तरह की सीमा लगाने में कोई भेदभाव नहीं बरता जाएगा और इसका एक मात्र उद्देश्य
अन्य सभी के अधिकारों और स्वतंत्रता की मान्यता और प्रतिष्ठा सुनिश्चित करना तथा
लोकतांत्रिक समाज की न्यायसंगत एवं अनिवार्य मांगों को पूरा करना है।
3- इस घोषणा में शामिल प्रावधानों का अर्थ लगाते
समय न्याय, लोकतंत्र,
मानवाधिकारों के
सम्मान, समानता,
भेदभाव रहित
व्यवस्था, कुशल
प्रशासन एवं पूर्ण निष्ठा के सिद्धांतों को ही आधार माना जाएगा।
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